गुडग़ांवI पितृ पक्ष को तर्पण करने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। आजकल श्राद्ध चल रहे हैं, जो आगामी 25 सितम्बर तक चलेंगे। सभी अपने पितृों को प्रसन्न करने के लिए अपनी सामथ्र्यनुसार श्राद्ध कर्म कर रहे हैं। श्राद्ध कर्म का प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। ज्योतिषाचार्य पंडित डा. मनोज शर्मा का कहना है कि वाल्मीकि रामायण में सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का
संदर्भ आता है। उनका कहना है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के समय श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहाँ ब्राह्मणों द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए। इसी दौरान ब्राह्मणों न माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का निर्धारित समय निकलता जा रहा है। यह सुनकर सीता जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि श्री राम और लक्ष्मण अभी नहीं लौटे थे।
इसी उपरांत दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया की पिंड दान का समय बीता जा रहा है। यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई। तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी। पंडित जी का कहा है कि माता सीता ने फल्गू नदी के साथ साथ वहाँ उपस्थित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर राजा दशरथ का पिंडदान पूरी विधि विधान के साथ किया। इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोडक़र प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार कर लिया था। माता सीता को इस बात से प्रसन्नता हुई कि उनकी पूजा दशरथ ने स्वीकार कर ली है।
पर वह यह भी जानती थी कि प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है। पंडित जी का कहना है कि थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा, तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है। माता सीता ने क्रोधित होकर दिया आजीवन श्राप पंडित जी ने बताया कि कहा जाता है कि तब सीता जी ने कहा कि वहां उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म के साक्षी हैं। भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किए जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा, तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया। केवल वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया। पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया। पंडित जी ने बताया कि फल्गू नदी को श्राप दिया कि वह सिर्फ नाम की नदी
रहेगी, उसमें पानी नहीं रहेगा। इसी कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी है। गाय को श्राप दिया कि गाय पूजनीय होकर भी केवल उसके पिछले हिस्से की पूजा की जाएगी और गाय को खाने के लिए दर बदर भटकना पड़ेगा। आज भी हिन्दू धर्म में गाय के केवल पिछले हिस्से की पूजा की जाती है। माता सीता ने ब्राह्मण को कभी भी संतुष्ट न होने और कितना भी मिले उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी का श्राप दिया। तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया कि मिट्टी में नहीं उगेगी। यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं फलती। कौवे को हमेशा लड़ झगड कर खाने का श्राप दिया था। इसलिए कौआ आज भी खाना अकेले नहीं खाता है। सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का
प्रभाव आज भी इन पांचों में देखा जा सकता है, जहाँ इन पांचों को श्राप मिला वहीं सच बोलने पर माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।
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