गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर उन्हें नमन किया जा रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का भी अहम योगदान रहा। उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों का डटकर सामना किया और
देशवासियों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। बंगाल के ब्राह्मण परिवार में वर्ष 1904 की 26 जुलाई को जन्मी मालती
चौधरी को 16 साल की आयु में शांति निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती में भर्ती कराया गया। शांति निकेतन में मालती ने न केवल डिग्री प्राप्त की, बल्कि विभिन्न प्रकार की कला और संस्कृति में भी विशाल ज्ञान प्राप्त किया।
मालती चौधरी टैगोर के सिद्धांतों, शिक्षा और विकास और देशभक्ति के विचारों से बेहद प्रभावित थीं। वक्ताओं ने कहा कि नमक सत्याग्रह के समय मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेलों में उन्होंने साथी कैदियों को पढ़ाया और गांधीजी के विचारों और विचारों का प्रचार किया। वर्ष 1933 में उन्होंने अपने पति के साथ उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ का गठन किया, जिसको बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की उड़ीसा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा।
1934 में मालती चौधरी उड़ीसा में अपनी प्रसिद्ध पदयात्रा में गांधीजी के साथ शामिल हुईं। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के बच्चों के बीच शिक्षा का प्रसार करने के लिए बाजीरावत
छात्रावास और 1948 में उत्कल नवजीवन मंडल की स्थापना की थी। शिक्षा और ग्रामीण क्षेत्र में अपनी महान भूमिका के लिए उन्होंने खुद को एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया। उन्होंने कहा कि मालती चौधरी भूदान आंदोलन के दौरान विनोबा भावे के साथ थीं। वर्ष 1946 में मालती चौधरी को भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया। वह उत्कल प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के रूप में भी चुनी गई थी। उन्हें अनेकों पुरुस्कारों से नवाजा गया था। उनका निधन वर्ष 1997 में 93 साल की आयु में हुआ।
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