गुडग़ांव, विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है
जिसने गुरु शिष्य की महान एवं अतुलनीय परंपरा को जन्म दिया है। शिक्षण
संस्थाओं में छात्रों को शिक्षा देने वाले अध्यापक, व्यापार जगत में
प्रशिक्षण देने वाले उस्ताद व मास्टर तथा राजनैतिक क्षेत्र में अपना
प्रभाव जमाने वाले तथाकथित महान नेता विश्व के प्रत्येक कौने में पाए
जाते हैं, लेकिन मनुष्य को संपूर्ण ज्ञान देकर उसे किसी विशेष ध्येय के
लिए समर्पित हो जाने की प्रेरणा देने वाले श्री गुरु केवल भारत की धरती
पर ही अवतरित होते आए हैं। उक्त विचार गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी
दिव्यानंद महाराज ने गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर व्यक्त किए। उनका
कहना है कि गुरुओं के तपोबल को शिरोधार्य कर देश के असंख्य संतों,
महात्माओं, योद्धाओं व स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत के भूगोल, संस्कृति,
धर्म व राष्ट्र जीवन के मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर
कर दिया था। महाराज जी ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि इस गुरु परंपरा के
आध्य श्री गुरु महर्षि व्यास थे। इसीलिए भारत में व्यास पूजा के उत्सव का
श्री गणेश हुआ। इसी दिन विशाल ङ्क्षहदू समाज के लोग गुरु पूजन की परंपरा
को आस्था और श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं। उन्होंने साधकों से आग्रह
भी किया कि कोरोना वायरस के प्रकोप से स्वयं व अन्यों को बचाने के लिए
प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करते
हुए ही गुरु पर्व को मनाएं।
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