गुडग़ांव। हिंदी के साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय को प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार, कथाकार, ललित-निबन्धकार, संपादक और शिक्षक के रूप में जाना जाता है। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए साहित्यकार डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने कहा कि उनका जन्म उत्तरप्रदेश के कुशी नगर में 7 मार्च 1911 को हुआ था। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ही उनका क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह व उनके साथियों से संपर्क हो गया था। उनके साथ उन्होंने देश को आजाद कराने में युवाओं को जागरुक भी किया, जिसके चलते अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया था। उन्होंने कई समाचार पत्रों का संपादन भी किया और ऑल इंडिया रेडियो में भी अपनी सेवाएं दी। वह सैन्य सेवा से भी जुड़े रहे।
उन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता का इतिहास भी रचा तथा साथ ही लेखकों, कवियों को एक नया सशक्त मंच भी दिया। डा. अग्रवाल ने कहा कि उनकी प्रमुख कृतियों में कविता भग्नदूत, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, शेखर एक जीवनी आदि शामिल हैं। उन्होंने नदी के दीप, अपने-अपने अजनबी नामक उपन्यासों की भी रचना की थी। साहित्य में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन पर उन्हें भारतीय पुरुस्कार, अंतर्राष्ट्रीय गोल्डन रीथ पुरुस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार व ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 4 अप्रैल 1997 को उनका दिल्ली में निधन हो गया था। डा. अग्रवाल ने साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों से आग्रह किया है कि वे अज्ञेय के जीवन से प्रेरणा लेकर साहित्य क्षेत्र में आगे बढ़ें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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