गुडग़ांव- देश के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का भी बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए जहां देशवासियों को जागरुक किया, वहीं अपनी कुर्बानियां भी दी। उनके उनकी कुर्बानियों को देशवासी सदैव याद रखेंगे। महिला स्वतंत्रता सेनानी व किसान मजदूरों के हित में संघर्षरत रहने वाली सत्यवती देवी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू व अनिल पंवार ने कहा कि उनका जन्म 26 जनवरी 1906 को पंजाब के जालंधर में हुआ था, वह आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता स्वामी श्रद्धानंद की नातिन थी। उनकी मां वेद कुमारी समाजसेवी और महात्मा गांधी की अनुयायी थीं। परिवार के इस वातावरण का सत्यवती पर प्रभाव पड़ा। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गई। लोग उन्हें तूफानी बहन के नाम से पुकारते थे।
श्रमिक नेताओं ने कहा कि वह माक्र्सवादी विचारों से भी बड़ी प्रभावित थी। उन्होंने साम्यवादी विचारों की महिलाओं दुर्गा देवी, कौशल्या देवी आदि के साथ घूम-घूमकर लोगों को संगठित करने का काम भी किया था। वे किसान मजदूरों के शासन की कल्पना में दिन रात मेहनत करती थीं। उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़े जा रहे विभिन्न आंदोलनों में भी बढ़-चढक़र भाग लिया था। मजदूरों के लिए संघर्ष करते हुए वह कई बार जेल भी गई। अंग्रेजों को भी उनका सदैव भय बना रहता था। उन्होंने महिलाओं को घरों से निकालकर देश की आजादी में सहयोग करने का बड़ा कार्य किया था।
महिलाओं के अधिकारों के लिए भी उन्होंने बड़ा संघर्ष किया था। उनका कहना था कि महिला व पुरुष एक समान होने चाहिए और उनके अधिकार भी एक समान हों, तभी महिला तरक्की व उन्नति कर सकती हैं। श्रमिक नेताओं ने बताया कि क्षय रोग का शिकार होने से 21 अक्तूबर 1945 को उनका निधन हो गया था। उन्होंने देशवासियों से आग्रह किया कि सत्यवती देवी के जीवन से उन्हें प्रेरणा लेकर देश व समाज के लिए कार्य करने चाहिए।
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