गुडग़ांवI आजाद के 75वें अमृत महोत्सव को देशवासी धूमधाम से मना रहे हैं। इसके तहत उन शूरवीरों को याद कर रहे हैं जिंन्होंने देश की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान और देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए योगदान दिया था। शेर ए पंजाब के नाम से विख्यात महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए सिख समुदाय के वक्ताओं ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने अपने जीते जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास फटकने भी नहीं दिया था। उनका जन्म 1780 में गुंजरावाला जो अब पाकिस्तान में महाराजा महासिंह के घर हुआ था। अल्पायु में ही चेचक के कारण महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गई थी। 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का निधन हो गया था, राजपाठ का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया था। वर्ष 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की थी। गुरु नानक जी के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी कराई और उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था। वक्ताओं ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाईयां लड़ी।
उन्होंने सिख खालसा सेना का गठन भी किया। महाराजा रणजीत सिंह स्वयं अशिक्षित थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया था। राज्य में कानून व्यवस्था कायम करने के लिए उन्होंने कभी भी किसी को मृत्यु दंड नहीं दिया था। उनका राज्य धर्मनिरपेक्ष था और उन्होंने कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। अमृतसर के हरि मंदिर साहिब गुरुद्वारा को उन्होंने सोने से मंडवाया था। तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। वक्ताओं ने कहा कि बेशकीमती हीरा महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। वर्ष 1839 की 27 जून को महराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया।
उनके निधन के साथ ही अंग्रेजों ने उनके राज्य पर भी शिकंजा कसना शुरु कर दिया था और 1849 में अंग्रेजों ने सिखों के साथ युद्ध किया, लेकिन सिख हार गए थे और पंजाब को अंग्रेजों ने ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया था तथा कोहिनूर हीरा ब्रिटिश साम्राज्य की विक्टोरिया को अंग्रेजों द्वारा पेश किया गया था। वक्ताओं ने कहा कि काशी के विश्वनाथ मंदिर पर जो स्वर्ण पत्र आज भी दिखाई देता है, वह महाराजा रणजीत सिंह की उदारता का ही परिचायक है। महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद सिखों के आपसी वैमनस्य तथा अंग्रेजी कूटनीतिज्ञता का जबाव न देने की असमर्थता से सिख राज मिट गया। अन्यथा पंजाब पर महाराजा रणजीत सिंह का एकछत्र शासन रहा था। उन्होंने देशवासियों से आग्रह किया कि महाराजा रणजीत सिंह के आदर्शों को अपनाकर ही देश व समाज का भला संभव है, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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