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टिड्डियों का नहीं टला है अभी भी खतरा किसानों को जागरुक होने की है आवश्यकता : डा. भरत सिंह

गुडग़ांव, टिड्डी दल का प्रकोप अभी कम नहीं हुआ है। टिड्डी
दल एक बार फिर से गुडग़ांव मे हमला कर सकता है। इसको रोकने के लिए कृषि
विभाग ने तैयारी पूरी कर ली बताई जाती हैं। बताया जाता है कि टिड्डियों
का दल राजस्थान में है। यदि वह वहां से हरियाणा में नारनौल व महेंद्रगढ़
के रास्ते रेवाड़ी पहुंचता है तो गुडग़ांव भी टिड्डी दल के हमले से अछूता
नहीं रह पाएगा। हालांकि यह सब हवा के रुख पर निर्भर करता है कि टिड्डी
किस दिशा में जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जिले के गांव
शिकोहपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यरत कीट वैज्ञानिक डा. भरत
सिंह का कहना है कि यह टिड्डी दल पाकिस्तान से चला था और राजस्थान के
रास्ते हरियाणा के विभिन्न जिलों में पहुंच गया था। उनका कहना है कि
टिड्डियों के हमले से फसलों को बहुत खतरा है। इसके लिए किसानों को जागरुक
किया जाना चाहिए। स्वभाव से टिड्डी सर्वभक्षी होते हैं। ये सभी प्रकार की
हरी वनस्पतियों को चट कर जाते हैं। सूर्योदय के साथ ही टिड्डियों का दल
उड़ान भरने लगता है। ये दिन में 100 किलोमीटर से 200 किलोमीटर या इससे
अधिक की दूरी भी तय करने में सक्षम हैं। सूर्यास्त के बाद टिड्डी दल
खेतों में उतर जाता है और रात्रि में ही खेतों में खड़ी फसलों को नष्ट कर
डालता है। इनको ज्वार-बाजरा, अरहर, उड़द, मूंग व मक्का आदि की फसलें बेहद
पसंद हैं। डा. भरत सिंह का कहना है कि वैसे तो टिड्डी कीट पूरे वर्ष
सक्रिय रहते हैं, लेकिन जून-जुलाई से लेकर सितम्बर-अक्टूबर तक इनका
जनन-प्रजनन तथा फसलों में संक्रमण तेजी से साथ जारी रहता है। मादा कीट
80-100 तक की संख्या में अंडे देती है।  10-15 दिनों में अंडों से छोटे
शिशु निकलकर जमीन पर उछल-कूद करने लगते हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह
किया है कि टिड्डी दल से बचने के लिए लोहे के टीनों, तसलों तथा अन्य
प्रकार से तेज आवाज कर उन्हें भगाया जा सकता है। टिड्डियों के फसलों में
उतरने की अवस्था में कीटनाशी मिलाथियान या क्लोरोपायरिफास का छिडक़ाव कर
इन्हें नष्ट किया जा सकता है। टिड्डी नियंत्रण के उपाय प्रभावी क्षेत्र
के किसानों को सामूहिक रुप से मिलकर करने चाहिए, तभी इनको प्रभावी ढग़ से
नियंत्रित किया जा सकता है।

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