गुरुग्राम। पूरा देश पिछले करीब डेढ़ वर्ष से कोरोना
महामारी के प्रकोप एवं कोरोना से उपजी परिस्थितियों से निपटने के लिए
जी-जान से जुटा हुआ है। कोरोना के दौरान हर किसी ने अपने परिजनों ने किसी
न किसी को खोया भी है। कोरोना का प्रभाव न केवल आम जन-जीवन पर पड़ा,
अपितु बड़ी संख्या में जहां लोगों का रोजगार चला गया, वहीं दैनिक जीवन
में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों के दामों में भी जबरदस्त वृद्धि
हुई। खाद्य तेल जो गरीब की रसोई के लिए इस्तेमाल किए जाते थे, इन तेलों
की कीमत भी दोगुणा हो गई जिससे आम आदमी की रसोई का बजट और भी अधिक बिगड़
गया है। खाद्य तेलों में देश सदैव आत्मनिर्भर रहा है लेकिन कोरोना
महामारी के दौरान तिलहन की फसल ठीक नहीं हो पाई जिससे खाद्य तेलों में
जबरदस्त वृद्धि हुई है। तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकारों
द्वारा कई प्रयास भी किए गए लेकिन इसमें कोई विशेष कामयाबी नहीं मिल सकी।
जानकारों का कहना है कि जहां देश की जरुरत के अनुरुप तिलहन उत्पादन नहीं
बढ़ा, वहीं जीवन स्तर में सुधार और बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य तेल की
मांग बढ़ती ही गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत की आयातित खाद्य तेलों पर
निर्भरता लगातार बढ़ती ही गई। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने भी खाद्य
तेलों की कीमत घटाने के लिए जहां आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में
कमी की है, वहीं इस संकट से निपटने के लिए पिछले दिनों राष्ट्रीय खाद्य
तेल, पाम ऑयल मिशन की घोषणा भी की है। उनका कहना है कि खाद्य तेलों के
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों का असर घरेलू कीमत पर भी तेजी से पड़ता
है। देश को प्रतिवर्ष 65 से 70 हजार करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात करना
पड़ रहा है। इस दृष्टि से हमारा देश खाद्य तेलों का आयात करने वाला विश्व का सबसे बड़ा देश बन गया है। साथ ही उर्वरक कीटनाशक, ऋण सुविधा, फसल बीमा आदि भी उत्पादकों को देने होंगे ताकि वे तिलहन उत्पादों का उत्पादन कर सकें और देश को खाद्य तेलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
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