गुडग़ांव, देश के मजदूरों की समस्याएं कम होने का नाम नहीं
ले रही हैं।
पूरे देश में कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाव के लिए लॉकडाउन
चल रहा है,
जिसके चलते प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा
हो गया है
और प्रवासी मजदूरों ने अपने घर की राह पकडऩी शुरु की हुई है।
भले ही उन्हें
पैदल ही क्यों न जाना पड़े। हालांकि विभिन्न प्रदेशों की
सरकारों ने
इन प्रवासी मजदूरों को उनके गृह प्रदेशों में भेजने की
व्यवस्था भी
की हुई है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं है। ये मजदूर रेल व सडक़
दुर्घटनाओं
का शिकार हो रहे हैं। प्रदेश सरकारों को इन मजदूरों को उनके
गृह प्रदेशों
में भेजने की व्यवस्था में और तेजी लानी चाहिए तथा सरकार को
यह प्रयास
करने चाहिए कि भूख-प्यास से व्याकुल इन मजदूरों की जेब में
नगदी पहुंचनी
शुरु हो जाए। यह कहना है सामाजिक संस्था भगवान परशुराम
सेवादल के
अध्यक्ष पंडित अरुण शर्मा का। उनका कहना है कि यदि समय रहते
प्रदेश की
सरकारें इन प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह प्रदेशों में भेजने
की व्यवस्था
कर देती तो विभिन्न दुर्घटनाओं में मारे गए मजदूर काल का
ग्रास नहीं
बनते। मजदूर दोहरी मार झेल रहा है। भय-भूख से विचलित पैदल ही
मजदूर अपने
घरों की ओर जा रहे हैं। दूसरे सरकार की योजनाओं का लाभ भी इन
मजदूरों को
नहीं मिल पा रहा है। उनका कहना है कि मजदूर राष्ट्र निर्माण
में रीढ़ की
तरह होते हैं, लेकिन वे अपनी भूख-प्यास मिटाने के लिए दर-दर
की ठोकर खा
रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री एवं विभिन्न प्रदेशों
के मुख्यमंत्रियों
को उनके घर तक पहुंचाने के लिए धरातल पर युद्धस्तर पर
काम करने चाहिए
और उनकी रोजगार की व्यवस्था भी संबंधित सरकारों को करनी
चाहिए, ताकि
वे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें।
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