गुडग़ांव, वर्ष 2015 में पालम विहार पुलिस थाना में दर्ज
पॉक्सो एक्ट के मामले में पुलिस द्वारा जिला अदालत में अनट्रेसेबल
रिपोर्ट प्रस्तुत कर देने के आदेश को पीडि़त पक्ष ने उच्च न्यायालय में
चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने पीडि़त को राहत दी थी कि वह निचली अदालत
में प्रोटेस्ट पिटिशन दायर करे। पीडि़त पक्ष की प्रोटेस्ट पिटिशन पर
ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मधुर बजाज की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत में
पीडि़त पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केके मनन पेश
हुए। अदालत में मामले से संबंधित पुलिस अधिकारी भी पेश हुए और उन्होंने
एफएसएल की रिपोर्ट भी अदालत में पेश की, जिसमें पीडि़ता के घर की मूल
वीडियो को सही पाया गया। यानि कि यह वीडियो एडिट नहीं है और टीवी चैनल
द्वारा दिखाए गए वीडियो को एडिट पाया गया है। पीडि़ता के अधिवक्ता केके
मनन ने अदालत से आग्रह किया कि इस वीडियो का ऑरिजनल सोर्स उपलब्ध कराया
जाए। जिस मोबाइल से पीडि़ता के घर की वीडियो बनाई गई थी, वह बापू आसाराम
से संबंधित मामले में जोधपुर में जमा है। इसलिए इस सोर्स को जानना बहुत
जरुरी है, क्योंकि टीवी चैनलों का कहना है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं
दिखाया। उन्हें जो कुछ भी मिला है वह शिवा के मोबाइल में वीडियो क्लिप से
मिला है, उस आधार पर ही दिखा गया है। अदालत ने पीडि़त पक्ष के अधिवक्ता
की मांग को स्वीकार करते हुए पालम विहार पुलिस प्रभारी को आदेश दिए हैं
कि जोधपुर से मोबाइल, मैमोरी कार्ड लाकर मिलान किया जाए और रिपोर्ट आगामी
15 जून को अदालत में प्रस्तुत की जाए, ताकि प्रोटेस्ट पिटिशन का निपटारा
किया जा सके। मामले की पैरवी कर रहे जन जागरण मंच के हरि शंकर कुमार का
कहना है कि अदालत के आदेश से उन्हें उम्मीद बंधी है कि पीडि़ता को न्याय
अवश्य मिलेगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013 की 2 जुलाई को पालम विहार क्षेत्र
के सतीश कुमार (काल्पनिक नाम) के घर संत आशाराम बापू आए थे। बापू ने
परिवार के सदस्यों सहित उनकी 10 वर्षीय भतीजी को आशीर्वाद भी दिया था। उस
समय सतीश के घर के कार्यक्रम की वीडियो आदि भी बनाई गई थी। बापू आशाराम
प्रकरण के बाद 3 टीवी चैनलों ने बनाई गई वीडियो को प्रसारित किया था।
परिजनों ने आरोप लगाए थे कि उनकी व आशाराम बापू की छवि धूमिल करने के लिए
वीडिय़ो को तोड़-मरोडक़र अश£ील व अभद्र तरीके से प्रसारित किया गया था,
जिससे परिवार व मासूम बालिका को मानसिक व सामाजिक रुप से कष्ट झेलना पड़ा
था। आहत होकर परिजनों ने पालम विहार थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, जिस
पर पुलिस थाना ने जीरो एफआईआर दर्ज कर नोएडा पुलिस को भेजकर अपना पल्ला
झाड़ लिया था। पीडि़त पक्ष को सहयोग करने वाली संस्था जन जागरण मंच के
हरि शंकर कुमार का कहना है कि पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की थी, जिस पर
पीडि़त पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। सर्वोच्च न्यायालय
ने पीडि़ता की गुहार पर आदेश दिए थे कि गुडग़ांव पुलिस मामला दर्ज करे।
पालम विहार पुलिस थाना ने वर्ष 2015 की 19 मार्च को एफआईआर दर्ज कर ली
थी, लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की थी और अदालत में
अनट्रेसेबल रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। शिकायतकर्ता ने अनट्रेसेबल रिपोर्ट
वाले फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी हुई है और वहां पर 30 मई की
तारीख सुनवाई के लिए निश्चित है।
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