गुडग़ांव, श्मशान में भी पूरे ठाठ के साथ जीने की कला शिव
चरित्र से ही प्राप्त होती है। मानव जीवन तो अवश्य मिला है, लेकिन जीवन
जीने की कला नहीं मिल सकी है। भय और भ्रम से इंसान मुक्त नहीं हो पा रहा
है तो भव सागर से पार होने की बातें केवल सुनहरे स्वप्र बनकर ही रह
जाएंगे। यह बात सामाजिक संस्था मंथन आई हैल्थकेयर फाउडेशन व श्रीगीता
साधना सेवा समिति के संस्थापक गीता ज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद
महाराज ने श्रावण मास में जरुरतमंद लोगों को राशन सामग्री वितरित करते
हुए कही। उनका कहना है कि शिव चरित्र का मनन श्रवण जीवन जीने की
आद्यात्मिक, व्यवहारिक और मनोचिकित्सकीय साधना है। शिव पूजा कोई
कर्मकाण्ड नहीं है, अपितु वैदिक जीवन जीने का अनुष्ठान यज्ञ है। गोस्वामी
तुलसीदास जी ने भी भगवान शिव को विश्वास और पार्वती को श्रद्धा के रुप
में माना है। महाराज जी का कहना है कि आचार्यों का भी मानना है कि देव
पूजा तब करो, जब स्वयं को भी देवों के अनुरुप बना लो। यानि कि उनके जैसे
गुण व स्वभाव से स्वयं भी वैसे ही हो जाओ। शिव तो विषपान के साथ-साथ
प्रेममयी अमृत भी बांटते हैं तथा मौन मुद्रा में शांति और संतुष्ट रहते
हैं। यदि पूजा करने वाले के भीतर भी ऐसे गुण आ जाएं तो शिव भक्त धन्य हो
जाएंगे। उन्होंने श्रद्धालुओं से भी आग्रह किया कि कोरोना के प्रकोप के
चलते सभी धार्मिक स्थल बंद किए हुए हैं, इसलिए वे जिला प्रशासन के
दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों में ही श्रावण मास मनाएं और
भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
Comment here