गुरुग्राम, किसी व्यक्ति का सौंदर्य केवल उसकी आकृति से
नहीं, अपितु कृति से है। उसकी वाणी, स्वभाव, विचार-व्यवहार को देखकर ही
अच्छा या बुरा होने का निर्णय लेना चाहिए। उक्त उद्गार श्रीगीता साधना
सेवा समिति के संस्थापक गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने
श्रद्धालुओं से व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि केवल सौंदर्य प्रसाधनों का
प्रयोग ही पर्याप्त नहीं है। लोग सुंदर दिखाई देने के लिए विभिन्न
प्रसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं, जिसे आधुनिक महंगा फैशन कहा जा सकता है।
लोगोंं को इससे बचना चाहिए। अपने भीतर अच्छे भाव रखने चाहिए। निस्वार्थ
रुप से जरुरतमंदों की मदद करना अपना धर्म समझना चाहिए। तभी उनके सदगुणों
का लाभ अन्य लोगों को मिल सकता है। महाराज जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि
शोरुम में जाकर क्या केवल मॉडल और बाहर का रंग देखकर ही गाड़ी खरीद ली
जाती है या फिर बोनट खोलकर भीतर इंजन आदि भी देखा जाता है। जीवनरुपी
गाड़ी के बोनट को खोलकर पढऩे व समझ लेने की कला का नाम ही अद्यात्म है।
लोगों को अद्यात्म से जुडऩा चाहिए। अद्यात्म में इतनी बड़ी शक्ति है कि
वह मानव का स्वभाव ही बदल देता है। अपनी बुरी आदतों को त्याग कर अच्छी
आदतों का समावेश अपने भीतर लाएं तो यह ईश्वर की सबसे बड़ी साधना होगी। मन
की तरंगे मारकर बुरी आदतें संवार लें तो भगवान की उपासना पूरी हो जाएगी।
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