गुडग़ांव, कोरोना महामारी ने जहां देशवासियों के स्वास्थ्य
को प्रभावित कर रख दिया है, वहीं बेकाबू महंगाई ने भी कोरोना काल में
आमजन की कमर ही तोडक़र रख दी है। महामारी के इस दौर में महंगाई आम लोगों
की मुश्किलें और बढ़ा रही है। चाहे डीजल-पेट्रोल हो या फिर दैनिक जीवन
में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थ ही क्यों न हों। सरसों का तेल,
रिफाईड व वनस्पति तेलों ने गृहणियों की रसोई को भी प्रभावित कर रख दिया
है। जानकारों का कहना है कि थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई के साथ ही
खुदरा महंगाई की दरें भी जिस रफ्तार से बढ़ रही हैं, उससे महामारी से
पीडि़त आम लोगों की बढ़ती तकलीफों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
उनका कहना है कि महंगाई की दरों में लगातार 5 माह से वृद्धि दर्ज की जा
रही है, लेकिन मई के महीने में थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई रिकॉर्ड
स्तर पर पहुंच गई है। उनका मानना है कि मौजूदा महंगाई के पीछे पेट्रोल और
डीजल के साथ ही अन्य वस्तुओं के दामों में भी बेतहासा वृद्धि हुई है।
उनका यह भी मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम अभी और
भी बढ़ सकते हैं। इसलिए पेट्रोल-डीजल के दामों में किसी तरह की रियायत
मिलती नजर नहीं आ रही है। कई प्रदेशों में पेट्रोल व डीजल के दाम भी 100
रुपए प्रति लीटर के पार चले गए हैं। खाद्य सामग्री के दामों मे हो रही
वृद्धि देशवासियों पर दोहरी मार डाल रही है। जानकारों का कहना है कि
महंगाई को लेकर विपक्षी राजनैतिक दल भी अपनी आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन
समस्या का समाधान होता नजर नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि यदि महंगाई को
केंद्र सरकार ने शीघ्र ही नियंत्रित नहीं किया तो उसका असर अर्थव्यवस्था
की रिकवरी पर भी पड़ेगा। सरकार को स्थिति बिगडऩे से पहले ही पेट्रोल और
डीजल के दामों में रियायत के उपाय तलाशने के साथ ही खुदरा महंगाई की
रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। अन्यथा बढ़ती हुई
महंगाई के ये आंकड़े सरकार के लिए आर्थिक और राजनैतिक दोनों ही रुपों मे
चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे
आम आदमी कोरोना की मार झेलते-झेलते बढ़ती महंगाई से कुछ तो पार पा सके।
कोरोना ने सभी वर्गों व कारोबार को प्रभावित कर रख दिया है।
Comment here