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प्राकृतिक क्षेत्रों में गिरावट, लुप्त होती प्रजातियां ही हैं कोरोना महामारी का नतीजा

गुडग़ांव, पर्यावरण असंतुलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है
और इसी प्रकार प्रदूषण भी बढ़ रहा है। प्रदूषण के बढऩे से विभिन्न प्रकार
की बीमारियां भी लोगों को घेरती दिखाई दे रही हैं। पर्यावरण के क्षेत्र
में कार्यरत पर्यावरणविदों का कहना है कि लोगों ने प्रकृति के साथ
जबरदस्त छेड़छाड़ की है। यानि कि जंगलों व वनों की अधाधुंध कटाई व विकास
के नाम पर बड़े-बड़े वृक्षों की बलि भी दे दी गई है। जलवायु परिवर्तन व
जैव विविधता को भी बीमारियों का कारण बता रहे हैं। उनका तो यह भी कहना है
कि यही कारण है कि पिछले डेढ वर्ष से कोरोना महामारी विश्व में चल रही है
और इससे भारत भी अछूता नहीं रहा है। ये पर्यावरणविद कोरोना महामारी को
प्राकृतिक क्षेत्रों में गिरावट लुप्त होती प्रजातियों व उनके शोषण का
नतीजा बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस समय भारत सहित पूरी धरती जलवायु
परिवर्तन, जैव विविधता में नुकसान और प्रदूषण के रुप में विभिन्न संकटों
का सामना कर रही है। देश ने दशकों से अल्पकालिक आर्थिक हितों का रास्ता
अपनाया है। जिसने मनुष्य और दूसरे जीवों को सहयोग देने की परिस्थिति
तंत्र की क्षमता को कम कर दिया है। उनका कहना है कि मौजूदा स्थिति में
व्यापक बदलाव की जरुरत है। हालांकि देश कार्बनडाई ऑक्साईड उत्सर्जन को कम
करने और 2050 तक शून्य उत्सर्जन की मुहिम का हिस्सा बनने के लिए प्रयास
भी कर रहा है। उनका कहना है कि अच्छे भविष्य के लिए देश को ऐसी खाद्य
प्रणालियां तैयार करनी चाहिए, जो प्रकृति के लिए हितकर और बदलाव के
अनुकूल हों। बढ़ते प्रदूषण से मुक्ति व पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए
आम लोगों को जागरुक भी करना होगा। प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ को बंद
करना होगा। व्यापक स्तर पर प्रकृति को इंसान ने चुनौती दी है। इसी का
खामियाजा लोगों को विभिन्न बीमारियों व त्रासदियों के रुप में भुगतना पड़
रहा है।

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