गुरूग्राम, वनों की अधाधुंध कटाई व बढ़ते प्रदूषण ने सबकुछ
बदलकर रख दिया है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। वायुमडल का
तापमान बढ़ रहा है। कार्बनडाईऑक्साईट, मीथेन, सल्फरडाईऑक्साईड जैसी गैसें
भी बढ़ती जा रही हैं। इनकी वृद्धि मानव गतिविधियों के कारण ही हो रही
हैं। लोगों ने पहाडिय़ों तक को भी नहीं छोड़ा है। पहाडिय़ों पर फार्म हाऊस
एवं मौजमस्ती के लिए भवनों का निर्माण भी करा डाला है, जिससे प्रकृति का
संतुलन भी दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है। सभी पर्वतीय क्षेत्रों में
बादल फटने की घटनाएं घटित हो रही हैं। उतराखंड हो या हिमाचल या फिर जम्मू
कश्मीर या फिर लद्दाख ये सभी पर्वतीय प्रदेश बादल फटने की दुष्परिणाम झेल
रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रकृति संरक्षण के लिए
जाने जाते हैं। उन्हें क्षेत्र की नदियों, मिट्टी और हवा-पानी की सबकी
जानकारी होती है, लेकिन प्रदेश सरकारें उनकी जानकारी का कोई लाभ नहीं
उठाती। जानकारों का कहना है कि जब तक प्रकृति के संरक्षण के लिए कदम नहीं
उठाए जाएंगे, तब तक हालात बिगड़ते ही रहेंगे। केवल अफसोस प्रकट कर देने
से ही काम नहीं चलेगा। यदि ऐसे ही हालात रहे तो प्रकृति कभी किसी को भी
नहीं बख्सेगी। उनका कहना है कि प्राणतत्व कहे जाने वाले हवा-पानी ही आज
लोगों की जान लेने के लिए उतारु हैं। इस सबका कारण यह है कि हम सभी ने
पृथ्वी और प्रकृति संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। जानकारों का
तो यह भी कहना है कि कोरोना महामारी भी प्रकृति के असंतुलन में हो रही
वृद्धि का एक मुख्य कारण है। पहाड़ों पर ग्लोबल वार्मिंग बन रही है।
पृथ्वी का तापमान भी बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन भी मानसून की दिशा
को भटका देता है। इसी के कारण उमस की स्थिति पैदा होती है। उनका ये भी
कहना है कि जब यह उमस पहाड़ों का रुख करती है तब अतिवृष्टि के रुप में
कहर ढहा देती है।
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