गुरुग्राम, क्षमा और आत्मा की शुद्धि का महापर्व है
पर्युषण। यह पर्व जहां मन की खिड़कियों को खोलने वाला पर्व माना जाता है,
वहीं अतीत की गलतियों को महसूस करना और भविष्य में उन्हें न दोहराने का
संकल्प ही इस पर्व की मूल भावना है। हालांकि यह पर्व जैन धर्म से संबंधित
है लेकिन इसकी भावना वैश्विक है। क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती
है। जैन धर्माबलंबी भाद्रपद मास में इस पर्व को मनाते हैं। यह अंतरात्मा
की आराधना का पर्व भी माना जाता है। जैन समाज के जानकारों का कहना है कि
यह पर्व जीवन के परिवर्तन में कारण बन सकता है। यह हमारी आत्मा की कालिमा
को धोने का काम भी करता है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व में प्रतिदिन धर्म
के एक अंग को जीवन में उतारने का प्रयास किया जाता है। इसलिए इसे दसलक्षण
पर्व भी कहा जाता है। जिन 10 लक्षणों की आराधना की जाती हैं उनमें उत्तम
क्षमा, उत्तम मार्दव यानि कि सभी से नम्रता होना। उत्तम आर्जव भाव की
शुद्धता। उत्तम शौच, मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। उत्तम सत्य सत्य
बोलना। उत्तम संयम मन, वचन और शरीर को काबू में रखना। उत्तम तप मलिन
वृत्तियों को दूर करने के लिए तपस्या करना। उत्तम त्याग सुपात्र को ज्ञान
देना। उत्तम आकिंचन अपरिग्रह को स्वीकार करना तथा उत्तम ब्रह्मचर्य यानि
कि सद्गुणों का अभ्यास करना और पवित्र रहना। जानकारों का कहना है कि आज
भौतिकता की अंधी दौड़ में यह पर्व जिंदगी को जीने का नया मार्ग प्रशस्त
करता है। हमारी चेतना पर सुसंस्कार डालता है आत्मजागरण में सहायक बनता
है। इस पर्व का महत्व त्याग से जुड़ा हुआ है। आमोद-प्रमोद का इस पर्व में
कोई स्थान नहीं है। संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को
तिलांजलि देने का यह अवसर होता है। जैन समुदाय का कहना है कि श्वेतांबर
पंरपरा के जैन मतावलंबी आज 3 सितम्बर से 10 सितंबर तक और इसी प्रकार
दिगंबर जैन परंपरा के मतावलंबी इस पर्व को 10 से 19 सितंबर तक मनाएंगे।
संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र पर्व पर जिनेन्द्र भगवान की पूजा,
अभिषेक, शांतिधारा, विधान, जप, उपवास, प्रवचन श्रवण आदि दस दिन तक
सुसज्जित किए गए जैन मंदिरों में किया जाएगा। उनका कहना है कि इन नियमों
का बड़ी ही कठोरता से पालन भी किया जाएगा।
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