गुडग़ांव, यदि जीवन में प्रसन्नता व संतुष्टि नहीं है तो
धन-संपदा और वैभव होते हुए भी जीवन मूल्यहीन है और ऐसा जीवन लक्ष्यहीन तो
हो ही जाता है। जिस प्रकार पारस्परिक विश्वास न हो तो केवल बातों ही
बातों में प्रेम-प्यार के डायलॉग मात्र ही दिखावा होते हैं। इससे
पारस्परिक संबंध कभी अगाढ़ नहीं होते। यह कहना है सामाजिक संस्था मंथन आई
हैल्थकेयर फाउण्डेशन के संस्थापक व गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद
महाराज का, जो उन्होंने जरुरतमंदों को खाद्य सामग्री वितरित करते हुए
कही। उनका कहना है कि धन-संपत्ति का सदुपयोग हो यह तभी संभव होगा जब जीवन
में संयम होगा। संयम ही व्यर्थ के कार्यों से बचाएगा। महाराज जी ने गीता
व रामायण के संस्मरणों का जिक्र करते हुए कहा कि भले ही लॉकडाउन
धीरे-धीरे सशर्त ढीला भी पड़ रहा हो, लेकिन कोरोना वायरस अभी ढीला नहीं
पड़ा है। कारोबार भी बहुत आवश्यक है, लेकिन जीवन की प्रसन्नता को दांव पर
लगाकर नहीं। जीवन स्वस्थ और प्रसन्न रहे इसके लिए संयम रखते हुए सभी को
अपनी जीवन यात्रा करनी है। उन्होंने अनलॉक वन का पालन करते हुए कोरोना से
लड़ाई लडऩे की बात भी कही है। संस्था लॉकडाउन की अवधि से ही नियमित रुप
से असहाय व जरुरतमंदों को खाद्य सामग्री संस्था के सहयोग से उपलब्ध कराती
आ रही है।
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