गुडग़ांव, जीवन का वास्तविक अर्थ समझे बिना इसे सार्थक
बनाया जा सकता है। किसी वृक्ष को हरा-भरा व फलदार होने के लिए बाहर का
वातावरण तथा समय की अनुकूलता की जरुरत होती है, लेकिन इससे भी अधिक
आवश्यकता है भूमि का उपजाऊ होना और खाद-पानी फसल को समय पर मिलते रहना।
उक्त विचार गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने सावन माह के
प्रथम सोमवार पर मंथन आई हैल्थकेयर फाउण्डेशन एवं अद्यात्म साधना सेवा
समिति द्वारा असहाय व जरुरतमंद परिवारों को खाद्य सामग्री वितरित करते
हुए व्यक्त किए। उनका कहना है कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए भी हमें
जीवन के अर्थ को समझना होगा। जीवन केवल बाहर से ही नहीं, अपितु इसका सारा
महत्व तो इसके भीतर से ही है, जिसकी हमने उपेक्षा कर रखी है। संस्कार ही
अच्छे नहीं होंगे तो विचार और व्यवहार कैसे अच्छे होंगे। महाराज जी ने
भागवत कथा का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें भी उल्लेख है कि मन और बुद्धि
पाप मुक्त होने चाहिए, ताकि जीवन सदाचारी और अपराध मुक्त हो सके।
उन्होंने श्रद्धालुओं व अन्य लेागों से भी आग्रह किया कि जिला प्रशासन
द्वारा कोरोना वायरस से बचाव के लिए जो व्यवस्था प्रशासन द्वारा की हुई
है और जिला निर्देश जारी किए हैं उनका पालन करें, तभी इस महामारी से बचा
जा सकता है। महाराज जी का कहना है कि जरुरतमंदों को संस्था भविष्य में भी
सहयोग करती रहेगी।
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