गुरुग्राम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर भगवान
श्रीकृष्ण को केवल मथुरा या गोकुल में ही नहीं, अपितु अपने- अपने ह्रदय
मे भी प्रकट करना होगा। उक्त उद्गार गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद
महाराज ने श्रद्धालुओं से व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण केवल
व्यक्ति अवतार अथवा साक्षात परमात्मा ही नहीं, अपितु इस भारत भूमि का
गौरव बढ़ाने के लिए धर्म की प्रतिष्ठा और आसुरी तथा तामसी व्रतियों का
राक्षस और असुरों के रुप में नाश करने के लिए एक आद्यात्मिक चिंतन भी है।
महाराज जी ने कहा कि हमारा जीवन रसमय बने, बुद्धियोग के रुप में हम
सुख-दुख, लाभ-हानि और संयोग-वियोग आदि द्वंदों में सम रहें, उद्वग्ण न हो
जाएं। हमारा खिन-मन सदैव प्रसन्न रहे यह तत्वज्ञान और अनन्य उपासना की
दृष्टि भी उन्होंने अर्जुन को निमित बनाकर गीता उपदेश के रुप में हमें
प्रसाद रुप में प्रदान की है। महाराज जी का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण
का व्यक्तित्व और कृतित्व अर्थात उनके कार्य और कार्यशैली हमारे जीवन को
संपूर्ण रुप से जीने की कला देती है। यह भारत भूमि धन्य है जहां भगवान
श्रीकृष्ण अवतार लिया।
Comment here