गुडग़ांव, पिछले करीब 2 वर्षों से कोरोना महामारी का
सामना पूरा विश्व करता आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। कोरोना
महामारी से हर वर्ग व कारोबार प्रभावित हुआ है। महामारी के कारण
खिलाडिय़ों के प्रशिक्षण व आवाजाही में भी बाधा आ रही है। अगर यह बाधा
नहीं पड़ती तो टोक्यो में आयोजित ओलंपिक में पदकों की संख्या इतनी न
होती, यानि कि खिलाड़ी और अधिक पदक लेकर आते। ओलंपिक में भाग लेने वाले
खिलाड़ी अधिकांशत: ग्रामीण व गरीब परिवारों से ही ताल्लुक रखते हैं। यदि
उनको और अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती तो ओलंपिक में भारत की तस्वीर
कुछ और ही होती। इस सबके बावजूद भी निचले स्तर पर खेल में ज्यादा निवेश
करने की जरुरत है। स्कूली स्तर पर यदि खिलाडिय़ों को सभी सुविधाएं उपलब्ध
कराई जाएं तो नई खेल प्रतिभाएं भी सामने आएंगी। यह आशा खेल से जुड़े
जानकारों ने व्यक्त की है। उनका कहना है कि उनका कहना है कि ओलंपिक में
भाला फेंक प्रतियोगिता में नीरज चोपड़ा ने ही स्वर्ण पदक हासिल किया है।
नीरज ने एथेलेटिक्स के इतिहास में नए अध्याय की शुरुआत कर दी है।
उन्होंने एथलेटिक्स में चले आ रहे पदक के सूखे को खत्म किया है। टोक्यो
ओलंपिक में भारत ने कुल 7 पदक जीते हैं, जो किसी एक ओलंपिक में सबसे अधिक
पदक लाने का भारत का नया रिकॉर्ड है। इससे पहले वर्ष 2012 के लंदन ओलंपिक
में भारत ने 6 पदक हासिल किए थे। उनका कहना है कि कुछ खिलाडिय़ों को छोडक़र
अधिकांश खिलाडिय़ों ने टोक्यो में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है,
लेकिन फिर भी हमारे खिलाड़ी पदकों में दोहरे अंकों तक नहीं पहुंच पाएं
हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि कोरोना महामारी के कारण हमारे बहुत से
खिलाडिय़ों को ठीक से प्रशिक्षण भी नहीं मिल पाया था, वे आवाजाही संबंधी
प्रतिबंधों के चलते विदेशी प्रतिस्पर्धाओं में भी भाग नहीं ले सके थे।
प्रतियोगिताएं होनी बहुत जरुरी हैं। क्योंकि उससे खिलाडिय़ों की प्रतिभा
में निखार आता है। जब कोरोना से हालात ठीक हो जाएंगे और हमारे खिलाड़ी
अच्छी तरह से प्रशिक्षण लेकर विदेशी प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे तो उनकी
प्रतिभा में और भी निखार आएगा। अगले ओलंपिक में वे अधिक पदक हासिल कर
सकेंगे। जानकारों का यह भी कहना है कि जमीनी स्तर पर खिलाडिय़ों को जो
सुविधाएं मिलनी चाहिए वे उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। जो खिलाड़ी
नाम कमा लेते हैं, उन्हें तो सुविधाएं मिल जाती हैं लेकिन जो शुरुआती
संघर्ष के दौर में होते हैं उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि उन्हीं पर
अधिक ध्यान देने की जरुरत है। उनका यह भी मानना है कि स्कूली स्तर पर ही
यदि खिलाडिय़ों पर खर्च बढ़ाएं, उन्हें खेल सुविधाएं उपलब्ध कराएं तो बहुत
सी नई खेल प्रतिभाएं सामने आएंगी। इन उभरी हुई प्रतिभाओं को सालाना वितीय
मदद व खेल सुविधाएं उपलब्ध कराने के बारे में सरकारों को सोचना चाहिए।
हरियाणा सरकार ऐसा कर रही है। मुख्यमंत्री ने घोषणा भी की है कि महिला
हॉकी टीम में जितनी भी लड़कियां शामिल थी,उन सभी को 50-50 लाख रुपए दिए
जाएंगे। गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली इन महिला खिलाडिय़ों को थोड़ी
बहुत मदद अवश्य ही मिल जाएगी। जानकारों का कहना है कि हॉकी की दोनों
टीमों को तैयार करने में उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की भूमिका
अहम रही है। उन्होंने हॉकी टीम के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए जो
आवश्यक था, वह किया। अन्य प्रदेश सरकारों को भी उड़ीसा सरकार के इस
प्रयास से प्रेरणा लेनी चाहिए। ऐसे ये सभी प्रयास पदक जीतने से पहले किए
जाने चाहिए।
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