गुडग़ांव, सतगुरु मिलन का अर्थ है धर्म अथवा परमात्मा के
मार्ग का द्वार खुल जाना, न कि अपना एक अन्य जगत खड़ा कर लेना। राष्ट्र
सेवा भी तभी वैदिक यज्ञ और योग माना जाएगा, जब किसी भी पद व प्रतिष्ठा का
मानव को लोभ न हो। यह कहना है सामाजिक संस्था मंथन आई हैल्थकेयर
फाउण्डेशन के संस्थापक गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज का,
जो उन्होंने जरुरतमंदों को खाद्य सामग्री वितरित करते हुए कही। महाराज जी
का कहना है कि वीर सावरकर, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, मदनलाल ढींगरा
आदि शहीदों से हम सभी को पे्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्होने मातृभूमि को आजाद
कराने के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर दिया था। महाराज जी का कहना है
कि लोग प्रतिष्ठा पद व पारिवारिक सुख के लिए संत समुदाय के समक्ष जाकर
विनती करते हैं कि यह अमुख पद उन्हें मिल जाए। इससे धर्म और हमारे इस
निजी संसार में क्या अंतर रह जाएगा। साधु-संतों को भी इस प्रकार के
अनुयायियों से बचना चाहिए। धर्म के मार्ग का कभी भी त्याग नहीं करना
चाहिए। धर्म में सहनशक्ति को विशेष महत्व दिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण
का भी कहना है कि मन बुद्धि की स्थिरता ही जीवन का महायोग है। उन्होंने
कोरोना पीडि़तों की सहायता करने का आग्रह भी अपने अनुयायियों से किया।
उनका कहना है कि सरकार व जिला प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पालन करते
हुए ही इस महामारी से निजात पाई जा सकती है।
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