गुडग़ांव, कोरोना महामारी की 2 लहरों का सामना देश पिछले
डेढ़ वर्ष से करता आ रहा है। इस दौरान हर क्षेत्र में कोरोना ने उथल-पुथल
मचाकर रख दी है। समाज का ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न होकर रह गया है।
रोजगार पर भी बड़ा असर पड़ा है, जब कारोबार ही प्रभावित हो गए तो रोजगार
कहां और कैसे बचेगा। कोरोना के कारण वर्क फ्रॉम होम की पद्धति भी विकसित
हुई। इस पद्धति से महिला एवं पुरुषों ने घरों से ही अपने प्रतिष्ठानों के
लिए काम करना शुरु किया हुआ है। पुरुष वर्ग तो अपना कार्य आसानी से इस
पद्धति के माध्यम से करता आ रहा है, लेकिन महिलाकर्मियों को बड़ी
परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं पर जहां ऑफिस के काम का
बोझ रहता है, वहीं घर को संभालने की जिम्मेदारी भी इन महिलाकर्मियों की
ही होती है। या यूं कहें कि कोरोना काल में महिलाओं पर इतना बोझ बढ़ गया
है कि कामकाजी महिलाएं अपना काम तक छोडऩे का मन बना रही हैं और कुछ
महिलाकर्मियों ने तो अपना ऑफिस भी छोड़ दिया है। जानकारों का कहना है कि
कामकाजी महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे परिवार को प्राथमिकता दें
और इस प्राथमिकता की कीमत उन्हें पेशेवर जीवन को छोडक़र चुकानी पड़ती है
और वे अपनी नौकरी छोडक़र चुका भी रही हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि
भारतीय समाज में सदियों से रुढिवाद का बोलबाला रहा है। हालांकि आधुनिकता
के इस दौर व बदलते परिवेश में रुढिवादिता में कुछ कमी अवश्य आई है, लेकिन
समाज अभी भी पूरी तरह से रुढिवादिता के दंश से उबर नहीं पाया है। समाज
में मान्यता है कि पुरुष वर्ग नौकरीपेशा कर कमाएं और महिलाएं गृहस्थी
संभालने व उसकी देखभाल का काम ही करें, लेकिन प्रश्र ये उठता है कि देश
को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन यह सोच समाज में आज भी कायम है
कि घरेलू जिम्मेदारियां केवल महिलाओं की ही है। जानकारों का कहना है कि
कोई देश ऐसा नहीं जहां बच्चों को सामाजिककरण के माध्यम से लिंगभेद जनित
भूमिकाएं छोटी उम्र से ही सिखाई न जाती हों। जिसका नतीजा यह होता है कि
लिंग जनित श्रम विभाजन का भेद किसी भी स्थिति में अपना स्वरुप नहीं बदल
रहा है। युवा पीढी पुरुष और महिलाओं की समाज में भूमिकाओं को लेकर आज भी
रुढिवादी है। महिलाओं के वजूद, अधिकारों और निर्णय लेने की उनकी क्षमता
को नकारने का चलन आज भी प्रचलित है। जानकारों का कहना है कि यदि किसी भी
व्यक्ति, वर्ग या समुदाय के हितों की निरंतर उपेक्षा की जाए तो भविष्य
में उसके परिणाम समाज के लिए अहितकर ही साबित होंगे।
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