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केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों को प्रधानमंत्री के नाम सौंपे जाएंगे ज्ञापन

गुडग़ांव, कोरोना वायरस के प्रकोप का सामना लोग लॉकडाउन का
पालन करते हुए कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों की आर्थिक स्थिति
बहुत खराब हो गई है। कोरोना का सीधा असर श्रमिकों व दिहाड़ीदार मजदूरों
पर पड़ा है। हालांकि सरकार ने कुछ आवश्यक शर्तों के साथ कारोबार करने की
अनुमति दे दी है, लेकिन इन श्रमिकों की समस्याएं कम होती नजर नहीं आ रही
हैं। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर श्रमिकों से जुड़ी समस्याओं
से प्रधानमंत्री को अवगत कराने के लिए प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर
कार्यरत उपायुक्तों के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपे जाने का
निर्णय लिया गया है। श्रमिक संगठन इंटक के अमित यादव व एटक के कामरेड
अनिल पंवार का कहना है कि केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा कोरोना महामारी
की आड़ में मजदूरों, कर्मचारियों और मेहनतकशों के जन-जागृत अधिकारों,
श्रम कानूनों में संशोधन करने व सार्वजनिक क्षेत्र को निजी हाथों में
देने के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर प्रदेश के हर जिले
में जिला उपायुक्त के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिए जाएंगे। उनका
कहना है कि भूख से बेहाल करोड़ों मजदूरों व जरुरतमंद लोगों तक सरकार मदद
पहुंचाने में पूरी तरह से नाकाम रही है। उद्योगपति जहां कर्मचारियों की
छंटनी करने से बाज नहीं आ रहे हैं, वहीं कई कंपनियों ने तो मजदूरों को
लॉकडाउन के दौरान का वेतन भी नहीं दिया है। सरकारी तंत्र की विफलता के
कारण मजदूर सैकड़ों किलो मीटर पैदल चलकर अपने गृह राज्य जाने पर मजबूर हो
रहे हैं। उनका कहना है कि ज्ञापन में मांग की जाएगी कि मजदूरों के काम के
घंटे बढ़ाने की जो साजिश चल रही है उसे वापिस लिया जाए। जब तक मजदूरों व
जरुरतमंदों के रोजगार बहाल नहीं हो जाते, तब तक उन्हें बिना शर्तों के
सूखी खाद्य सामग्री दी जाए। संगठित व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को 7500
रुपए प्रतिमाह सहायता के रुप में दिए जाएं, पुरानी पैंशन बहाल की जाए,
ठेका प्रथा खत्म कर ठेकाकर्मियों को सरकार अपने पेरोल पर ले, सार्वजनिक
क्षेत्रों का निजीकरण बंद किया जाए, अपने गृह प्रदेश जाने वाले श्रमिकों
को सरकार उनके घरों तक पहुंचाने के लिए कार्यवाही करे।

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