गुरुग्राम, स्नेह, प्रेम, सदभाव और रंगों का त्यौहार
होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को हर्षोल्लास के साथ मनाया
जाता आ रहा है। इस वर्ष यह त्यौहार 28 मार्च को होलिका दहन के रुप में
होगा और सोमवार 29 मार्च को रंग और गुलाल से होली खेली जाएगी। धार्मिक
मान्यता है कि होली से 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी
तिथि से 8 दिन के लिए होलाष्टक का समय कल रविवार से शुरु हो जाएगा,
जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। जो होलिका दहन के बाद ही खत्म
होगा। पंडित मुकेश शर्मा का कहना है कि धार्मिक और पौराणिक मान्यता के
अनुसार होलाष्टक के 8 दिनों में अष्टमी से पूर्णमासी के दौरान सौर मंडल
के 8 ग्रहण, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और राहू
उग्र स्वरुप धारण कर लेते हैं। इनके अशुभ प्रभाव से बचने के लिए 8 दिनों
तक विवाह, नामकरण, गृह-प्रवेश, नया वाहन, संपति खरीद आदि कार्य नहीं किए
जाते। उनका कहना है कि होलाष्टक में बनते कार्यों में भी रुकावट, मानसिक
और शारीरिक कष्ट, धन की हानि व संतान से परेशानी हो सकती है। इस दौरान
शुभ कार्य न करने के पीछे यह मान्यता भी है कि भगवान नारायण के परमभक्त
प्रह्लाद को उसकी बुआ होलिका के साथ अग्रि में बैठाने के आदेश के बाद
धर्मप्रेमी लोगों में दुख व्याप्त होने से शुभ कार्य करना अशुभ माना गया।
यह विदित है कि होलिका अग्रि में भस्म हो गई थी और प्रह्लाद सकुशल बच गई
थे। यानि कि बुराई का अंत हुआ और अच्छाई की जीत हुई थी।
होलाष्टक का संबंध है कामदेव से भी
पंडित जी का कहना है कि भगवान शिव ने जिस दिन कामदेव को क्रोधावेश में
आकर भस्म किया था, उस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी।
इसलिए तभी से होलाष्टक की शुरुआत मानी जाती है। भगवान विष्णु के अवतार
भगवान श्रीकृष्ण ने अष्टमी के दिन से ही गोपियों के साथ होली खेलना शुरु
किया और लगातार 8 दिनों तक होली खेलने के बाद रंगों से सराबोर वस्त्रों
को होलिका दहन के बाद अग्रि में समर्पित किया था।
गृह-नक्षत्र व नकारात्मक ऊर्जा
पंडित जी का कहना है कि फाल्गुन माह में रंगों के त्यौहार से कुछ दिन
पहले सभी ग्रह व नक्षत्र अशुभ स्थिति में पहुंच जाते हैं। जिस कारण
पृथ्वी के चारों ओर नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए होलाष्टक के
दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते।
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