गुडग़ांव, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि
यानि कि आज बुधवार को राधा अष्टमी का पर्व व्रत रखकर राधा की विधिवत रुप
से पूजा-अर्चना तथा संकीर्तन कर मंदिर में दीपदान भी करेगे। शास्त्रों
में श्रीराधा-कृष्ण की शाश्वत शक्ति स्वरुपा एवं प्राणों की अधिष्ठात्री
देवी के रुप में राधा को माना जाता है। राधा की पूजा किए बिना भगवान
श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी गई है। ये संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन)
करती हैं, इसी कारण इन्हें श्रीराधा कहा गया है। प्रकृति रुप, राधा पुरुष
रुप श्रीकृष्ण के साथ इतनी आबद हैं कि संसार में उनकी जैसी चाहत को कोई
बांध ही नहीं सकता। यह प्रेम का वह शिखर है जब प्रेम अपने उत्कृष को छू
लेता है, तब देह स्थूल मन हो जाता है और मन सूक्ष्म देह हो जाता है। राधा
और कृष्ण का मिलन प्रकृति और पुरुष का सहज एवं स्वभाविक मिलन है। उनके
मिलन और प्रेम का प्रारंभ व दूरियां संयोग नहीं है। कृष्ण के विराट को समेटने के लिए राधा ने अपने ह्रदय का अनंत
विस्तार किया। माता राधा रानी खुद ही प्रकृति हैं, उनमें अनन्य प्रेम है।
जो सभी के ईष्र्या का कारण है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम को लेकर
कई लोक कथा भी प्रचलित हैं। राधा नाम की प्रेम की शक्ति, वायु, जल व
अग्रि की तरह वास्तविक है।
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