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देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का भी रहा है बड़ा योगदान

गुडग़ांव- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं के योगदान को भी देशवासी भुला नहीं पाएंगे। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, अपितु बड़ी क्रांतिकारी भी रही हैं। उन जैसी महिला क्रांतिकारियों के कारण ही देश आजाद हो सका था। वक्ताओं ने महिला क्रांतिकारी रामदेवी चौधरी की जयंती पर उन्हें याद करते हुए कहा कि वह उड़ीसा मूल की थी और स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक समाजसुधारक भी थी। उड़ीसा के लोग उन्हें माँ कहते थे। उनका जन्म 3 दिसम्बर 1899 को उड़ीसा के पुरुषोत्तमपुर के गोपाल बल्लाव दास के घर हुआ था। 15 वर्ष की अल्प आयु में उनका विवाह गोपाबन्धु चौधरी से हुआ था और वह अपने पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल हो गई। वह महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थीं।

देश को आजाद कराने में क्रांतिकारी गतिविधियों में भी उनका बड़ा योगदान रहा था। उन्होंने खादी के प्रति लोगों को जागरुक किया था और स्वयं भी खादी धारण करती थी। नमक सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। वक्ताओं ने कहा कि उनकी राष्ट्र के प्रति सेवाओं को देखते हुए नवम्बर 1982 में उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी प्रकार उन्हें उत्कल विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ फिलॉसॉफी की मानद उपाधि दी गई थी। उनका निधन 22 जुलाई 1985 रामदेवी का निधन हुआ था। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए उनके नाम पर उड़ीसा के भुवनेश्वर में रामदेवी महिला विश्वविद्यालय बनाया गया। वक्ताओं ने देशवासियों से आग्रह किया कि रामदेवी के आदर्शों को अपने भीतर आत्मसात करें। यही उनके
प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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