गुडग़ांवI देश को आजाद कराने में महिलाओं का भी विशेष योगदान रहा है। आजादी के 75वें अमृत महोत्सव में देशवासी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। देश को स्वतंत्र कराने में वीरांगनाओं का भी विशेष योगदान रहा था। क्षत्राणी वीरांगनाओं ने अपने दूध की लाज रखने के लिए समय आने पर न केवल अपने जवान बेटों को देश की सेवा के
लिए सौंप दिया, अपितु समय आने पर उनका बलिदान देने में भी देर नहीं की। इन्हीं वीरांगनाओं में से एक रानी अब्बक्का भी शामिल हैं, जिन्होंने पुर्तगालियों के विरुद्ध अपने क्रांतिकारी कार्यों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम जारी रखा था। वक्ताओं ने उन्हें उनकी पुण्यतिथि पर
याद करते हुए कहा कि 12 जुलाई 1555 को पुर्तगालियों के विरुद्ध लड़ते-लड़ते शहीद हो गई थी।
रानी अब्बक्का का जन्म कर्नाटक के उल्लाल नामक नगर के चौटा राजघराने में हुआ था। इस राजघराने में मातृ वंश को प्रधानता दी जाती थी और यह विधान भी था कि राज्यसिंहासन पुत्र को प्राप्त न होकर पुत्री को ही प्रदान किया जाता था। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रानी अब्बक्का को उल्लाल नगर की रानी घोषित कर दिया गया था। उन्हें राजकाज के संचालन का पर्याप्त अनुभव था और उन्होंने युद्धविद्या का भी अच्छा प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था । रानी अब्बक्का ने सभी संप्रदायों के लोगों को अवसर देते हुए प्रशंसनीय कार्य किए थे। उनकी जनता भी उनकी न्यायप्रणाली से बड़ी प्रभावित थी, जिसके कारण उन्हें जनता का बड़ा समर्थन मिला और वह बड़ी लोकप्रिय भी हुई। रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढक़र भाग लिया था। युद्ध में लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुई थी। वक्ताओं का कहना है कि देश की महान वीरांगनाओं के आदर्शों पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है।

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