श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है सुदर्शन माता मंदिर
1963 में किया गया था मंदिर का निर्माण
दुर्लभ मूर्तियां स्थापित की गई हैं मंदिर में
गुडग़ांव। गुरुग्राम का धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। इसलिए गुडग़ांव का महत्व अधिक बढ़ जाता है। गुरु द्रोण ने पाण्डवों को धनु विद्या गुडग़ांव में ही दी थी। उस समय के कुछ अवशेष भी गुडग़ांव यानि कि गुरुग्राम में मिलते हैं। उत्तरी भारत की प्रसिद्ध शीतला माता का मंदिर भी गुडग़ांव में ही है। मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्रों का आयोजन भी होता है। नवरात्रों पर शहर के दर्जनों बड़े मंदिरों में भी नवरात्रों के पर्वों को धूमधाम से मनाया जाता है। ओल्ड रेलवे रोड स्थित सुदर्शन माता मंदिर का भी बड़ा महत्व है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। गुरु द्रोण द्वारा पाण्डवों को दी गई धनु विद्या की शिक्षास्थली के निकट ही सुदर्शन माता के मंदिर का निर्माण लगभग 6 दशक पूर्व शहर के दानवीर स्व. जनकराज व उनके परिजनों इंद्रराज मलिक द्वारा कराया गया है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया है। नवरात्रों में ही नहीं अपितु सामान्य दिनों में भी श्रद्धालुओं की कतारें मंदिर के बाहर मुख्य सडक़ तक लगी दिखाई देती हैं। नवरात्रों में तो श्रद्धालुओं की संख्या अन्य मंदिरों की अपेक्षा और अधिक बढ़ जाती हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि उनकी मनोकामना मां सुदर्शन अवश्य पूरा करती हैं।
यह है मंदिर का इतिहास
मंदिर के ट्रस्टी इंद्रराज मलिक का कहना है कि मंदिर का निर्माण उनके पिता स्व. जनकराज द्वारा वर्ष 1963 में कराया गया था। इस स्थान पर मिट्टी के बड़े बड़े टीले होते थे। यह स्थान उनके पिता ने सिनेमा हॉल बनाने के लिए खरीदा था। जमीन खरीदने के बाद उन्होंने देखा कि एक महिला रोजाना टीले पर पूजा-अर्चना करती थी। उनके पिता ने उस महिला से कहा कि यह जमीन सिनेमा हॉल निर्माण के लिए खरीदी है और यहां पर पूजा करना बंद कर दें। महिला ने हठ करते हुए कहा था कि यहां पर शेर आता है तथा शेर के पंजे के निशान भी हैं। शेर के पंजे का निशान देखकर उनके पिता द्वारा जमीन की खुदाई कराई गई, जिसमें देवी की पिण्डी मिलने पर माना गया कि प्राचीन समय में यहां पर देवी का मंदिर रहा होगा। जमीन से निकली पिण्डी के बाद मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर से निकली पिण्डी के अतिरिक्त कई दुर्लभ मूर्तियां भी मिली, जिनको पूरे विधि-विधान के अनुसार मंदिर में स्थापित कर दी गई हैं। मंदिर में कालसर्प की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर में स्थापित किया गया शिवलिंग नर्मदा नदी से लाया गया है, जिसमें कुदरती तौर पर चक्षु बने हुए हैं, जिसका पिछला हिस्सा हरा है। इस प्रकार का शिवलिंग बहुत कम स्थानों पर मिलता है। इसके प्राकृतिक रुप से पत्थर से बने बैल पर सवार शिव की प्रतिमा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है, जिसका पिछला हिस्सा हरा है। काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर से नेपाल राज परिवार द्वारा इसे भेंट किया गया था। मंदिर की विशेषता यह भी है कि मंदिर के कार्यों के लिए किसी भी व्यक्ति से कोई चंदा, दान आदि नहीं लिया जाता। ट्रस्ट अपनी ओर से ही पूरी व्यवस्था करता है।
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