गुडग़ांवI भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का भी कम योगदान नहीं रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढक़र भाग लेने वाली महाराष्ट्र के नागपुर मूल की लक्ष्मीबाई केलकर को उनकी जयंती पर याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनका जन्म 6 जुलाई 1905 को नागपुर में हुआ था। वह राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका थीं। उन्हें सम्मान से मौसी जी कहते थे। 14 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह वर्धा के वकील पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ था। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने बड़ा संघर्ष किया। उन्होंने अपने घर में हरिजन नौकर रखे थे। महात्मा गांधी की प्रेरणा से वह स्वतंत्रता संग्राम में भी शामिल रही। गांधी जी ने एक सभा में लोगों से आंदोलन को चलाने के लिए दान की अपील की तो लक्ष्मीबाई केलकर ने अपनी सोने की जंजीर ही दान कर दी थी। 1932 में उनके पति का निधन हो गया था। उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर झुकाव बढ़ता चला गया।
उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डा. हेडगेवार से भेंट की तो उन्होंने उनसे महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया। जिसके फसस्वरुप उन्होंने राष्ट्रसेविका समिति संस्था का गठन भी किया था, जिसका विस्तार देश के विभिन्न प्रदेशों में भी हुआ था। वर्ष 1945 में संस्था का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वह कराची में थीं। उन्होंने संस्था की सेविकाओं से आग्रह किया कि वे हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहें। उन्होंने हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुँचने की व्यवस्था भी की थी। वक्ताओं ने बताया कि लक्ष्मीबाई ने जीजाबाई के मातृत्व व अहिल्याबाई के कर्तत्व को अपनाते हुए अपने जीवनकाल में कई बाल मंदिर, भजन मण्डली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास की स्थापना भी की थी। वह रामायण पर बहुत सुन्दर प्रवचन देतीं थीं। 27 नवम्बर 1978 को उनका देहान्त हो गया था। वक्ताओं ने महिलाओं से आग्रह किया कि वे लक्ष्मीबाई केलकर के आदर्शों पर चलकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में सहयोग दें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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