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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी तात्या टोपे को अंग्रेजों ने चढ़ा दिया था फांसी पर

गुडग़ांव- देश में आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े शहीदों व क्रांतिकारियों को
पूरा देश याद भी कर रहा है। इसी क्रम में महान क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया गया। वक्ताओं ने कहा कि तात्या टोपे का जन्म 6 जनवरी 1814 को देवला में हुआ था। भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन 1857 के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। वह नाना साहब के करीबी तथा बचपन के मित्र थे। 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे एक जनरल थे। उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की काफी मदद की और उनके साथ मिलकर ग्वालियर शहर पर कब्जा भी कर लिया था।

अंग्रेजों को उन्होंने लोहे के चने चबवा दिए थे। बताया जाता है कि कानपुर की रक्षा के लिए लड़ी गई लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। ब्रिटिश जनरलों के खिलाफ उन्होंने कई लड़ाई लड़ी थी। वक्ताओं ने कहा कि गुरिल्ला सेनानी के रुप में उनकी सेवाएं सदैव याद की जाएंगी। देश को आजाद कराने में उनका बड़ा योगदान रहा था। अपनों से ही भीतरीघात का सामना तात्या टोपे को करना पड़ा था। 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में इस क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी को अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई थी। वक्ताओं ने कहा कि तात्या टोपे के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि युवा वर्ग उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें ताकि देश व समाज की उन्नति हो सके।

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