गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसके तहत देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वतंंत्रता सेनानियों को देश याद भी कर रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान भी पुरुषों से कम नहीं रहा है। उन्होंने भी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर जेल की यातनाएं सही थी। इसी क्रम में स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ सुचेता
कृपलानी की जयंती पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सुचेता कृपलानी ने शिक्षक के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की थी। उनका जन्म 25 जून 1908 को एक बंगाली परिवार मे हरियाणा के अम्बाला शहर में हुआ था और शुरुआती शिक्षा लाहौर में हुई और दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज व सेंट स्टीफन कॉलेज से उच्च शिक्षा ग्रहण की।
इसके बाद सुचेता बनारस हिंदु विश्वविद्यालय में लेक्चरार के पद पर नियुक्त हुई। उनका विवाह आचार्य जेबी कृपलानी से हुआ था। स्वतत्रता आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढक़र भाग लिया और कई बार जेल भी गई। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी बढ़-चढक़र भाग लिया था। जब आंदोलन के दौरान अंगे्रंजी सरकार ने नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था तो सुचेता कृपलानी ने इस आंदोलन को जीवित रखा। अंग्रेजी सरकार उन्हें पकडऩा चाहती थी लेकिन वह भूमिगत हो गई। भूमिगत होने के बाद वह आंदोलन का नेतृत्व करती रही थी। उन्होंने महिलाओं व युवतियों को लाठी चलाना, चिकित्सा और आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की शिक्षा भी दी थी।
राजनैतिक कैदियों के परिवारो की सहायता की जिम्मेदारी भी उठाती थी। देश के आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में सुचेता कृपलानी 1952 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए चुनी गई और 1962 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर उन्हें प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री भी बनाया गया था। 5 साल तक प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप काम करने के बाद वह वापस केंद्र में पहुंच गई थी। वक्ताओं ने कहा कि सुचेता कृपलानी ऐसी महिला नेता थी जिसने कभी चुनाव नहीं हारा। वर्ष 1974 की एक दिसम्बर को उनका निधन हो गया था। उन्होंने देशवासियों से कहा कि सुचेता कृपलानी के आदर्शों को अपनाना चाहिए, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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