गुडग़ांवI देश की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में जहां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वहीं वे अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन कर रही हैं। महिलाएं अब केवल रसोई तक ही सीमित रहकर नहीं रह गई हैं। वे जहां अंतरिक्ष में पहुंच चुकी हैं, वहीं देश की सीमाओं की रक्षा करने में भी अपना योगदान दे रही हैं। इन्हीं में से एक नीरजा भनोट भी अपह्रत किए विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गई थी। यह घटना 5 सितम्बर 1986 को घटित हुई थी। उनकी बहादुरी के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पुरुस्कार अशोक चक्र से सम्मानित भी किया था। उनके बलिदान दिवस पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि नीरजा का जन्म 7 सितम्बर 1963 को चंडीगढ़ में हरीश भनोट व माँ रमा भनोट के परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंडीगढ़ व उच्च शिक्षा मुंबई में प्राप्त की थी। उन्होंने पैन एम एयरलाइंस में विमान परिचारिका के रुप में काम किया था। वक्ताओं ने कहा कि मुंबई से न्यूयॉर्क के लिए पैन एम रवाना हुआ था, जिसे कराची में 4 आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सभी यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।
नीरजा उस विमान में परिचारिका के रुप में नियुक्त थी। आतंकवादियों ने विमान अपह्रण करने के 17 घंटें के बाद यात्रियों की हत्या करनी शुरु कर दी थी। उन्होंने अपनी हिम्मत का परिचय देते हुए विमान के आपातकाल द्वार से यात्रियों को सुरक्षित भी बाहर निकाल दिया था। यदि वे चाहती तो वह स्वयं भी विमान से बाहर आ सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकालने का प्रयास किया। वह यात्रियों की रक्षा करते हुए आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गई थी। नीरजा ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर विमान यात्रियों की बहुमूल्य जानें बचाई थी। देशवासियों को उन पर गर्व है। केंद्र सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। उनकी स्मृति में मुंबई के घाटकोपर क्षेत्र में उनके नाम पर एक चौराहे का नामकरण किया गया है। फिल्म जगत के दिग्गज फिल्म निर्माताओं ने नीरजा के जीवन पर फिल्म भी बनाई है। वक्ताओं ने कहा कि महिलाओं, विशेषकर युवतियों को नीरजा के बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए।
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