गुडग़ांव- दक्षिण भारत के प्रमुख राजनीतिज्ञ, अधिवक्ता व शिक्षाविद् सर सुब्बियर सुब्रह्मण्य अय्यर की पुण्यतिथि पर उन्हें याद
करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सुब्रह्मण्य अय्यर की गिनती दक्षिण भारत के प्रमुख राजनीतिज्ञों में होती है। वह प्रादेशिक कौंसिल के सदस्य, न्यायाधीश, अधिवक्ता व शिक्षाविद् भी रहे। 30 वर्षों तक सामाजिक क्षेत्र में काम करते रहे। उन्होंने कहा कि सुब्रह्मण्य अय्यर का जन्म 1 अक्टूबर 1842 को मद्रास के मदुरा जिले में हुआ था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह 1885 में मद्रास आ गए और सरकारी अधिवक्ता के रुप में काम करने लगे। वर्ष 1895 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रुप में काम किया। महाजन सभा से जुडक़र उन्होंने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। 1885 में मुम्बई में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम स्थापना अधिवेशन में मद्रास
प्रान्त के प्रतिनिधियों का उन्होंने ही नेतृत्व किया था।
एनी बेसेंट ने जब होमरूल लीग की स्थापना की तो वह मानद अध्यक्ष बनाए गए। होमरूल लीग की गतिविधियों के कारण जब एनी बीसेंट मद्रास में नजऱबंद कर ली गईं तो सुब्रह्मण्य ने उनकी रिहाई में मदद करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन को पत्र लिखा था। इस पर वायसराय चेम्सफोर्ड ने जब उनकी आलोचना की तो अय्यर ने ब्रिटिश सरकार की दी हुई सर की उपाधि लौटा दी थी। वह कुछ समय तक मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। उन्होंने हिंदू तीर्थों की दशा सुधारने के लिए धर्म संरक्षण सभा और धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने के लिए शुद्ध धर्म मंडली की स्थापना की। वर्ष 1915 में गांधीजी के भारत लौटने के बाद मद्रास में उनका स्वागत करने के लिए जो सभा आयोजित की गई उसकी अध्यक्षता एस. मनी अय्यर ने ही की थी। 5 दिसम्बर 1924 को उनका निधन हो गया था। वक्ताओं ने देशवासियों से आग्रह किया कि वे सुब्रह्मण्यम अय्यर के दिखाए मार्ग पर चलकर देश व समाज के विकास में अपना योगदान दें।
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