गुडग़ांव: समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने व जाति-पाति का भेद मिटाने में सतत प्रयासरत रहे मध्यकाल के संत गुरु रविदास की जयंती पर साईबर सिटी के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं तथा समाजसेवियों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में शहरवासियों ने भाग लिया। सामाजिक संस्था डा. राजेंद्र प्रसाद फाउण्डेशन द्वारा राजेंद्रा पार्क क्षेत्र में संत गुरु रविदास के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। संस्था के अध्यक्ष राजेश पटेल ने कहा कि गुरु रविदास का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा के दिन संवत 1938 को हुआ था।
उनके पिता संतोख दास तथा माता का नाम कलसांं देवी था। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। वह जूते बनाने का काम किया करते थे। संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहब के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहब ही थे। उन्होंने कहा कि प्रारंभ से ही रविदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। जिसके कारण परिवार को परेशानियों का सामना भी करना पड़ता था। उन्हें परिजनों ने घर से निकाल दिया था। अब उनका अधिकांश समय भजन तथा साधु-संतों के सत्संग में ही व्यतीत होता था।
उन्होंने कहा कि ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किए जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताते हुए सभी को परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया था। उनके उपदेशों का आमजन पर इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि वे उनके श्रद्धालु बन गए। मीरा बाई भी उनसे प्रभावित होकर उनकी शिष्या बन गई थी। वक्ताओं ने कहा कि आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जिनको अपनाकर समाज का भला संभव है। श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों में संस्था से जुड़े संदीप, राजीव ठाकुर, शुभम सिंह, गगन, राहुल राज, राहुल तिवारी व क्षेत्रवासी भी बड़ी संख्या में शामिल रहे।
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