गुडग़ांवI पूरा राष्ट्र आजादी का 75वां अमृत महोत्सव धूमधाम से मना रहा है। देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों व क्रांतिकारियों को राष्ट्र याद कर उन्हें नमन कर रहा है। इस स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी अपनी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में कल्पना दत्त भी शामिल थी। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए क्रांतिकारी सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया था। वर्ष 1933 में कल्पना दत्त पुलिस से मुठभेड़ होने पर गिरफ्तार कर ली गई थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रयत्नों से ही वह जेल से बाहर आ पाई थीं। अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए कल्पना दत्त को वीर महिला की उपाधि से सम्मानित किया गया था। वक्ताओं ने कहा कि कल्पना दत्त का जन्म वर्ष 1913 की 27 जुलाई को वर्तमान में बांग्लादेश के चटगांव के गांव श्रीपुर में हुआ था। वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आईं और प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियां पढक़र वह काफी प्रभावित हुई। 18 अप्रैल, 1930 को चटगांव शस्त्रागार लूट की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और क्रान्तिकारी सूर्यसेन के दल से संपर्क कर लिया।
वह वेश बदलकर इन लोगों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने निशाना लगाने का भी अभ्यास किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने व उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। कल्पना पुलिस को चकमा देकर घर से निकलकर क्रान्तिकारी सूर्यसेन से जा मिलीं। वर्ष 1933 में कुछ समय तक पुलिस और क्रान्तिकारियों के बीच सशस्त्र मुकाबला होने के बाद कल्पना दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हो गई थी। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं और वर्ष 1943 में उनका कम्युनिस्ट नेता पूरन चंद जोशी से विवाह हो गया था। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी में काम करने लगीं। वर्ष 1995 की 8 फरवरी
को उनका निधन हो गया।
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