गुडग़ांवII देशवासी आजादी का आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं। जिसके तहत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, वीर शहीदों व
क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है। इसी क्रम में देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाने वाले पंजाब के क्रांतिकारी बलराज भल्ला को उनकी जयंती पर याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि उनका 10 जून, 1888 को पंजाब के गुजरांवाला जिले में हुआ था।
उनके पिताजी महात्मा हंसराज थे, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और डीएवी कॉलेज लाहौर के प्रथम प्रधानाचार्य भी थे। एमए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह रासबिहारी बोस और खुदीराम बोस से प्रेरित होकर देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए थे। तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने उनकी सभी डिग्रियां वापिस ले ली थी।
श्रमिक नेता ने कहा कि बलराज भल्ला क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे और उनका मानना था कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए साम्राज्यवाद के कुछ प्रतिनिधियों की जान ले ली जाए या सरकारी बैंकों को लूट लिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। तत्कालीन वाइसराय की गाड़ी पर बम फेंकने के आरोप में उन्हें तीन वर्ष की सज़ा हुई थी और लाहौर केस मामले में भी उन्हें सजा सुनाई गई थी।
वह प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपतराय के अनुयायी थे। विदेशों में रह रहे भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए उन्होंने गुप्त रुप से जर्मनी की यात्रा भी की थी। बताया जाता है कि जीवन के अंतिम दिनों में बलराज भल्ला का राजनीतिक हिंसा पर से विश्वास उठ गया था और वह महात्मा गांधी के अहिंसक आदोलन के अनुयायी बन गए थे। 26 अक्टूबर 1956 को उनका निधन हो गया था।
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