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समाज सुधारक व साहित्यकार गोदावरीश मिश्र को उनकी पुण्यतिथि पर किया याद

गुडग़ांवI देश के स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। उन्हीं की बदौलत देश आजाद हो सका है। तभी देशवासी खुली हवा में सांस ले रहे हैं। वर्ष 1886 की 26 अक्तूबर को उड़ीसा के पुरी जिले के बाणपुर गांव में जन्मे गोदावरीश मिश्र एक
प्रसिद्ध समाज सुधारक, साहित्यकार और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास, कहानियाँ तथा जीवन चरित्र आदि लिखे हैं। भारतीय साहित्य अकादमी ने उनकी आत्मकथा को पुरस्कृत किया था। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि देश सेवा की और सामाजिक बुराइयों को दूर करने की भावना गोदावरीश मिश्र के अन्दर आरंभ से ही थी। बहुत-सी रूढिय़ों का पालन न करने के कारण सामाजिक बहिष्कार की भी उन्होंने परवाह नहीं की। उनके सामने अध्ययन के लिये इंग्लैण्ड और अमेरिका जाने का अवसर भी आया, परंतु उन्होंने अस्वीकार कर दिया।

उनका कहना है कि ब्रिटिश सरकार उन्हें डिप्टी कलेक्टर की नौकरी भी दे रही थी, लेकिन उन्होंने उसे भी स्वीकार नहीं किया। इसके स्थान पर उन्होंने पं. गोपबन्धु द्वारा स्थापित सत्यवादी स्कूल में 30 रुपये प्रतिमाह वेतन पर अध्यापक बनना स्वीकार किया। राष्ट्रीय नवजागरण के क्षेत्र में भी गोदावरीश मिश्र की लेखनी का बड़ा योगदान रहा। उनका कहना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील गोदावरीश मिश्र की इतनी मान्यता थी कि वर्ष 1927 में अपने उड़ीसा के भ्रमण के समय गांधी जी दो दिन उनके घर पर रुके थे। स्वराज्य पार्टी के टिकट पर वे बिहार-उड़ीसा कौसिल के सदस्य भी रहे। 1941 में उन्होंने उड़ीसा के शिक्षा और वित्तमंत्री का पदभार संभाला। उत्कल विश्वविद्यालय की स्थापना उनके अथक प्रयत्नों से ही संभव हुई थी। वर्ष 1956 की 25 जुलाई को उनका निधन हो गया था।

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