गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें देश की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों,
क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।
उन्हीं की बदौलत देश आजाद हो सका है। तभी देशवासी खुली हवा में सांस ले रहे हैं। बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और देश को आजाद कराने वाले एक महान स्वतन्त्रता सेनानी थे। उनकी लोकप्रियता के कारण ही उन्हें लोकमान्य तिलक का आदरणीय शीर्षक दिया गया था। वह ब्रिटिश शासन के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे। उनकी पुण्यतिथि पर वक्ताओं ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरि जिले के गांव
चिखली में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक के रुप में भी कार्य किया। अंग्रेजी शिक्षा के वह घोर आलोचक थे।
उनका मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। वह कांग्रेस के गर्मदल के नेता के रुप में जाने जाते हैं। लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल के साथ उन्होंने कार्य किया था। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। उन्होंने नारा दिया था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे हम लेकर ही रहेेंगे। अंग्रेजों ने राजद्रोह के आरोप में उन्हें कई वर्ष जेल में भी बंद रखा था। वक्ताओं ने कहा कि कारावास के दौरान ही उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था और वह अपनी पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके थे। उन्होंने देशवासियों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट करने के लिए गणेशोत्सव व शिवाजी उत्सवों का आयोजन करना भी शुरु कर
दिया था। इन त्यौहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस लोकमान्य तिलक ने देशवासियों में भरा था। एक अगस्त 1920 को बम्बई में उनका निधन हो गया था। वक्ताओं ने कहा कि उनके आदर्शों पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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