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अमर शहीद क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को उनके बलिदान दिवस पर किया याद

गुडग़ांव- पूरा देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। इस दौरान स्वतंंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने वाले शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों को भी राष्ट्र याद कर नमन कर रहा है। इसी क्रम में स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी क्रांतिकारी, ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध ऐतिहासिक प्रतिकार काकोरी घटना के महानायक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को उनके बलिदान दिवस पर साईबर सिटीवासियों ने उन्हें याद किया। वक्ताओं ने कहा कि क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी यानि कि निर्जला एकादशी पर शाहजहांपुर उत्तरप्रदेश में हुआ था। रामप्रसाद बिस्मिल एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषा भाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। वह मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में ही देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों के संगठन में शामिल हो गए थे। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी और उनका प्रकाशन भी कराया।

उन पुस्तकों की बिक्री से जो पैसा मिला उनसे हथियार खरीदे और उनका प्रयोग ब्रिटिश राज का खात्मा करने के लिए किया। धार्मिक भावनाएं भी उनमें कूट-कूट कर भरी थी। रामप्रसाद बिस्मिल नियमित रुप से व्यायाम भी करते थे ताकि अंग्रेंजों से टक्कर ली जा सके। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश का गंभीर अध्ययन कर स्वामी सोमदेव के साथ राजनैतिक विषयों पर खुली चर्चा भी की थी। वर्ष 1915 में अंग्रेजों ने देश की आजादी में सक्रिय भूमिका अदा करने वाले भाई परमानंद को फांसी पर लटका दिया था। जिससे रामप्रसाद बिस्मिल बड़े विचलित हुए और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा भी ली थी।

वक्ताओं ने कहा कि मैनपुरी षडय़ंत्र व काकोरी कांड जैसी कई घटनाओं में रामप्रसाद बिस्मिल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। अंगे्रजों ने 30 वर्ष की आयु में 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जिला जेल में फांसी की सजा दे दी थी। 16 दिसम्बर तक उन्होंने अपनी आत्मकथा का अंतिम अध्याय भी लिख डाला था। उनकी फांसी का समाचार सुनते ही उनके समर्थक व अनुयायी बड़ी संख्या में जेल पर एकत्रित हो गए थे। ब्रिटिश शासन ने किसी तरह से उनके शव को परिजनों को सौंपा था।

असंख्य लोगों ने जुलूस के रुप में उनकी अंतिम यात्रा निकालकर राप्ती नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। उनकी फांसी के बाद क्रांतिकारी आंदोलन में तेजी आ गई थी। क्रांतिकारियों का देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। वक्ताओं ने युवाओं से आग्रह किया कि पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के आदर्शों को वे अपनाएं ताकि देश व समाज का भला हो सके। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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