गुडग़ांव- मकर सक्रांति का पर्व प्राचीन काल से ही मनाया जाता आ रहा है। देश के विभिन्न प्रदेशों में इस पर्व के रुप अवश्य बदले दिखाई देते हैं। मकर सक्रांति दान देने वाला दिन माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख है कि इस दिन लोगों को अपनी सामथ्र्यनुसार दान अवश्य करना चाहिए। गुडग़ांव के विभिन्न क्षेत्रों में तिल से बने खाद्य पदार्थों की दुकानें सजी हुई हैं। खरीददारों की भी भीड़ लगी है। सभी अपनी
सामथ्र्यनुसार ये खाद्य पदार्थ खरीद रहे हैं। इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष पंडित मांगेराम शर्मा का कहना है कि भगवान सूर्य का मकर राशि में संचरण अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भिन्न-भिन्न तरीकों से, भिन्न-भिन्न आस्थाओं से किसी रूप में मकर सक्रांति का यह पर्व, भगवान भास्कर का दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर पग पढना, एक पुण्य काल माना जाता है। राजस्थान और गुजरात में एक विशेष पतंगबाजी का उत्सव भी होता है।
दक्षिण में यह पर्व पौंगल के नाम से जाना जाता है। बिहार में ही नहीं अपितु समस्त भारतवर्ष में इस दिन तिलादान का बड़ा महत्व है। पंजाब में मकर सक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है तो उत्तरी भारतवर्ष और विशेष रूप से हरियाणा में नववधुएं अपने सास-ससुर, जेठ-जेठानी और देवर को बड़े प्यार से पुकारते मनाते तरह-तरह के गर्म वस्त्र मिष्ठान बांटते नजर आते हैं। इस पर्व को रुठे हुए संबंधियों को मनाने का पर्व भी कहा जाता है। उन्होंने इस पर्व के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तीर्थ राज प्रयाग में मकर सक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं।
अत: वहां मकर सक्रांति पर्व के दिन स्नान करना अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है। पंडित जी का कहना है कि मकर सक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, थोड़ा गर्मी का एहसास होने लगता है। मकर सक्रांति पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगा सागर पर लगता है। गंगा सागर के पीछे पौराणिक कथा है कि इस दिन गंगा जी स्वर्ग से उतरकर भागीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई थी। गंगा जी के पावन जल से ही राजा सागर के 60 हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इसी घटना की स्मृति में यह तीर्थ गंगा सागर के नाम से विख्यात हुआ और प्रतिवर्ष मकर सक्रान्ति पर गंगा सागर में मेले का आयोजन होने लगा।
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