गुडग़ांवI अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने में शहीदों, क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों व आजाद हिंद फौज के सैन्य कर्मियों का बड़ा योगदान रहा। देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारियों,
स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जा रहा है। आजाद हिंद फौज के प्रथम गोरखा सैनिक मेजर दुर्गा मल्ल की जयंती पर उन्हें याद करते हुए उत्तराखंड मूल की वरिष्ठ महिला अधिवक्ता डा. अंजू रावत नेगी ने कहा कि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी। उनका जन्म एक जुलाई 1913 को देहरादून के निकट डोईवाला गांव में गंगाराम मल्ल छेत्री के घर हुआ था, जो गोरखा राइफल्स में नायब सूबेदार थे। वह बचपन से ही प्रतिभावान और बहादुर थे। उन्होंने गोरखा मिलिटरी मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। वह 18 वर्ष की आयु में ही गोरखा रायफल्स की बटालियन में भर्ती हो गए थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 1941 में मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युद्ध की घोषणा हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज
का गठन किया था, जिसके गठन में दुर्गा मल्ल की अहम भूमिका रही थी। उन्हें मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होने युवाओं को आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल करने में बड़ा योगदान दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना है कि उनको गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था। 27 मार्च 1944 को उन्हें अंगे्रजों ने मणिपुर में कोहिमा के पास उखरूल में पकड़ लिया। युद्धबंदी बनाने और मुकदमे के बाद उन्हें बहुत यातना दी गई। 15 अगस्त 1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और 10 दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। देशवासियों को ऐसे शहीदों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इन्हीं की वजह से देश आजाद हुआ और अब हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
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