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सत्यार्थ प्रकाश की रचना कर महर्षि दयानंद सरस्वती ने समाज में ला दी थी क्रांति


गुडग़ांव। आद्यात्मिक नेता व समाजसुधारक तथा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातिवाद, बाल-विवाह और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का विरोध किया था। सत्यार्थ प्रकाश की रचना कर उन्होंने समाज में क्रांति ला दी थी। स्वामी दयानंद ने ही देश को आजाद कराने के लिए सबसे पहले स्वराज का नारा दिया था, जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानंद के दिखाए मार्ग पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है।

उक्त उद्गार सर्वोदय पूर्वांचल विकास मंच द्वारा स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में छोटे लाल प्रधान व राजेश पटेल ने स्वामी दयानंद के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात प्रदेश के टंकारा में हुआ था। समाज में सुधार लाने के उद्देश्य से उन्होंने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। वह आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज सुधारक के रुप में जाने जाते हैं। देश की आजादी में भी उनका बड़ा योगदान रहा था।

उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए आवाज उठाई। गांधी जी ने भी उनके समाज सुधार कार्यक्रमों पर अपनी सहमति दी थी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अपना अहम योगदान दिया था। उन्हीं के प्रयासों से दयानंद एंग्लो विद्यालयों की स्थापना हुई। ये आज भी डीएवी के नाम से चल रहे हैं। बाल विवाह जैसी कुरीतियों के जहां वे विरोधी थे, वहीं वे विधवा विवाह के समर्थक भी थे। वक्ताओं ने कहा कि महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती के त्याग, तपस्या व संघर्ष का अनुसरण देशवासियों को करना चाहिए। श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों में कुसुम, वंदना, रुपा पटेल, सिद्धनाथ मिश्रा, राजेंद्र कुमार, विजय, रणदीप, प्रदीप, खुशबू आदि भी शामिल रहे।

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