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महाराजा छत्रसाल जीवनभर जूझते रहे मुगलों से

गुडग़ांव- देश में योद्धाओं की कभी कोई कमी नहीं रही है। ऐसे वीर योद्धा देश के विभिन्न प्रदेशों में हुए हैं कि उन्होंने मुगल शासकों व अंग्रेज शासकों से भी कड़ी टक्कर ली है और उनके साम्राज्य को ध्वस्त करने में कभी कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। ऐसे ही वीर योद्धा
महाराजा छत्रसाल मध्य युग के महान प्रतापी योद्धा थे। उन्होने मुगल शासक औरंगजेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना स्वतंत्र हिंदू राज्य स्थापित किया था। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनका जन्म 4 मई 1649 को बुंदेला क्षत्रिय राजपूत परिवार में हुआ था। वह ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। अपने समय के महान वीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। उनका जीवन मुगलों की सत्ता के खिलाफ संघर्ष और बुन्देलखण्ड की स्वतन्त्रता स्थापित करने के लिए जूझते हुए निकला। वह अपने जीवन के अन्तिम समय तक मुगलों से जूझते रहे।

उन्होंने बाल्यावस्था में ही युद्ध कौशल की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। महाराजा छत्रसाल अपने रण कौशल व छापामार नीति के आधार पर मुगलों के छक्के छुड़ाते रहे। उन्होंने मुगलों से कई लड़ाईयां लड़ी। वक्ताओं का कहना है कि 1744 में छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था। वह अपने गुरु प्राण नाथ का बड़ा आदर सम्मान करते थे और उन्हीं के दिशा-निर्देशों को मानते हुए उन्होंने औरंगजेब से कई युद्ध किए थे। युद्ध में उन्होंने औरंगजेब को घायल कर छोड़ दिया था। बताया जाता है कि उनके द्वारा दिए गए घावों के कारण ही औरंगजेब की मौंत हुई थी। वक्ताओं ने देशवासियों से आग्रह किया कि ऐसे महानवीर संगठक व प्रतापी वीरों का मान सम्मान किया जाना चाहिए और उनके द्वारा दिखाए रास्ते पर चलकर ही देश व समाज का भला संभव है।

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