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इतिहासकारों व साहित्यकारों का भी स्वतंत्रता संग्राम में रहा है योगदान

गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसके तहत देश के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ठ प्रदर्शन करने वाले इतिहासकारों, साहित्यकारों व स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद किया जा रहा है। इसी क्रम में देश के प्रसिद्ध इतिहासकार पुरातत्व के
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान एवं हिंदी साहित्यकार काशीप्रसाद जायसवाल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनका जन्म 27 नवम्बर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक व्यापारी परिवार में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा विदेश में हुई। विदेश से लौटने के बाद उन्होंने कलकता विश्वविद्यालय में प्रवक्ता बनने का प्रयास किया, लेकिन देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं मिली।

उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए बड़े कार्य किए थे। उन्होने कलकत्ता में वकालत भी की। वह 1899 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के उपमंत्री बने। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। पटना उच्च न्यायालय में उन्होंने वकालत भी की। वक्ताओं ने कहा कि पटना म्यूजियम की स्थापना भी उन्हीं की प्रेरणा से हुई। वह हिंदी साहित्य सम्मेलन, इतिहास परिषद, बिहार प्रांतीय हिंदी साहित्य संमेलन के सभापति रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के सहयोग से उन्होंने इतिहास परिषद् की स्थापना भी
की थी। 4 अगस्त 1937 को उनका निधन हो गया था।

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