गुडग़ांव- हालांकि कैंसर एक लाईलाज बीमारी है। लेकिन कैंसर के उपचार के लिए काफी शोध कार्य भी भारतीय रोग वैज्ञानिकों द्वारा
किए जाते रहे हैं, ताकि इन शोध का लाभ कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रसित लोगों को मिल सके। भारतीय रोग वैज्ञानिक वसंत रामजी खानोलकर की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उनका जन्म 13 अप्रैल 1895 को मराठा परिवार में हुआ था। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से अपनी चिकित्सा की पढ़ाई पूरी की और 1923 में पैथोलॉजी में एमडी भी किया। वक्ताओं ने कहा कि देश में पैथोलॉजी व चिकित्सा अनुसंधान के पिता के रुप में डा. खानोलकर को जाना जाता है। उन्होंने कैंसर, रक्त समूहों और कुष्ट रोग की महामारी
के उपचार खोजने में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
टाटा मेमोरियल अस्पताल, प्रयोगशालाओं और अनुसंधान के निदेशक के रूप में भी उन्होंने बड़े कार्य किए थे। केंद्र सरकार ने उन्हें चिकित्सा का राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर नियुक्त किया था, जो 10 वर्षों तक रहे थे। उन्होंने भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र को व्यवस्थित करने में अपना बड़ा योगदान भी दिया था। वक्ताओं ने कहा कि उन्होंने कैंसर और कुष्ठ रोग पर 100 से अधिक वैज्ञानिक पत्रों पर 3 पुस्तकें भी प्रकाशित की थीं। केंद्र सरकार ने मानवता के प्रति उनकी विशेष सेवाओं को देखते हुए वर्ष 1955 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनका निधन 29 अक्तूबर 1978 में हुआ था। वक्ताओं ने कहा कि मेडिकल के क्षेत्र में कार्य कर रहे युवा चिकित्सकों को डा. खानोलकर से प्रेरणा लेकर आगे बढऩा चाहिए।
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