गुडग़ांव। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और देश आजाद होने के बाद प्रथम लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर बने थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई संसदीय परम्पराएँ स्थापित की थीं। उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन एक अधिवक्ता के रूप में शुरू किया था। उन्हें विभिन्न भाषाओं का ज्ञान भी था और उन्होंने कई ग्रंथों की रचना भी की थी। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि उनका जन्म 27 नवम्बर 1888 को बड़ोदरा में हुआ था। उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की थी। इसी दौरान वह सरदार वल्लभ भाई पटेल और गांधीजी के प्रभाव में आ गए। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया और वकालत छोड़ दी थी।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के भी वे सचिव रहे थे। नमक सत्याग्रह में अपनी भूमिका के लिए उन्हें कारावास जाना पड़ा था। वह सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी अनेक बार जेल गए थे। उन्होंने मंदिर में हरिजनों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह भी किया था। खादी आदि रचनात्मक कार्यों में इनका निरंतर सहयोग रहा। श्रमिक नेता ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद 1947 में उन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था। वह संविधान सभा के प्रमुख सदस्य भी थे। उन्होंने मराठी, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा में अनेक ग्रन्थ भी लिखे थे। उनके विचारों पर श्रीमद्भागवदगीता का बड़ा प्रभाव था। इस महान् विभूति का 27 फऱवरी 1956 को निधन हो गया था।
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