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आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा मुण्डा को पूजा जाता है भगवान की तरह अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम

गुड़गांव। देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें देश की आजादी पर प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को भी राष्ट्र याद कर रहा है। आदिवासी समुदाय का भी देश को आजाद कराने में अहम योगदान रहा था। उन्होंने अपने परंपरागत अस्त्र-शस्त्रों का इस्तेमाल कर तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबवा दिए थे। इनमें से बिरसा मुण्डा मुख्य रहे हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले आदिवासी नेता एवं जननायक भगवान बिरसा मुण्डा की जयंती पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा उन्हें याद किया गया।

वनवासी कल्याण आश्रम के जगदीश कुकरेजा व संजीव आहूजा ने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों के लिए बिरसा मुण्डा ने कड़ा संघर्ष किया था। उनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को अडक़ी प्रखंड के तहत ग्राम उलिहातू में आदिवासी परिवार में हुआ था। ब्रिटिश शासन के उत्पीडऩ के खिलाफ उन्होंने क्रांति का आह्वान करते हुए आंदोलन का नेतृत्व भी किया था। राजनैतिक अधिकार समुदाय को दिलाने के लिए उन्होंने समुदाय के युवाओं को एकजुट कर उनमें राष्ट्रवाद की भावना पैदा कर दी थी। आदिवासी समुदाय उन्हें भगवान के रुप में भी देखते हैं।

केंद्र सरकार ने भी बिरसा मुण्डा की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए उनके सम्मान में जनजातिय गौरव दिवस 15 नवम्बर को मनाने का निर्णय लिया हुआ है। यह निर्णय केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 को लिया था। वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर 2 साल की सजा भी दी थी। कहा जाता है कि 3 फरवरी 1900 को उन्हें अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और 9 जून 1900 को रांची कारागार में उनकी संदिग्ध मौंत हो गई थी। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें जहर देकर मार दिया था। आदिवासी क्षेत्रों में आज भी बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

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