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पंजाब के पहले राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी भाई महाराज सिंह को उनकी जयंती पर किया याद

गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसके तहत देश को अंग्रेजों व मुगलों से आजाद कराने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाने वाले शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। देशवासियों में देशप्रेम का जज्बा सदैव से रहा
है। देशवासियों ने देश को आजाद कराने में अपना सर्वोच्च बलिदान भी दिया है, जिसको कतई भी भुलाया नहीं जा सकता। उन्हीं के कारण आज देशवासी गुलामी की बेडियों को तोडक़र खुली हवा में सांस ले रहे हैं। पंजाब के पहले राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी भाई महाराज सिंह तत्कालीन ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत कर स्वतंत्रता आंदोलन को पंजाब में खड़ा किया था और उन्होंने पंजाब क्षेत्र के लोगों से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लडऩे का माहौल भी तैयार कर दिया था।

भाई महाराज सिंह की जयंती पर उन्हें याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि  महाराज सिंह का जन्म लुधियाना के मलौद क्षेत्र में स्थित गांव रब्बो में हुआ था। उनके माता-पिता ने उन्हें निहाल सिंह नाम दिया था। बागी तेवरों वाले निहाल सिंह बड़े होकर भाई महाराज सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए। उस समय अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए देशवासी संघर्ष कर रहे थे। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ महाराज सिंह ने चंब घाटी में संघठन बनाकर देश को आजाद कराने का बीड़ा उठाया था। उनके संगठन में युवा बड़ी संख्या में शामिल भी थे। अंतिम सिख शासक महाराज दलीप सिंह को अंग्रेंजों ने लाहौर के किले में कैद किया हुआ था।

महाराज सिंह ने दलीप सिंह को लाहौर के किले से रिहा कराने की योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना कामयाब नहीं हो सकी थी। उन्होंने क्रांतिकारी गुटों को संगठित कर अंग्रेजों के खजाने व छावनियों को लूटने की योजना तैयार की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाई जिसका फायदा अंग्रेजों ने उठाते हुए अंग्रेजों ने उनको बंदी बना लिया था और 1850 में अंग्रेजी सरकार उन्हें बंदी बनाकर सिंगापुर ले गई थी। इस प्रकार भाई महाराज सिंह महाराजा दलीप सिंह को रिहा नहीं करा पाए। लेकिन देशवासियों विशेषकर पंजाब में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरु हो गया था। वक्ताओं ने कहा कि ऐसे बहादुरों से प्रेरणा लेकर ही देश व समाज का भला हो सकता है, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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