गुडग़ांव: देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत ही देश आजाद हुआ है और देशवासी खुली हवा में सांस ले रहे हैं। बटुकेश्वर दत्त स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रान्तिकारी रहे थे। उनकी जयंती पर याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किए थे। शहीद ए आजम भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधानसभा में बम विस्फोट के समय बटुकेश्वर दत्त भी थे और उन्हें भी अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था।
उनका जन्म बंगाल में 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा कानपुर में हुई थी। वर्ष 1924 में कानपुर में ही इनकी मुलाकात क्रांतिकारी भगत सिंह से हुई थी। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना शुरु कर दिया था और वहीं पर उन्होंने बम बनाना भी सीख लिया था। 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा यानि कि वर्तमान में संसद भवन में ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध करते हुए भगत सिंह के साथ बम विस्फोट किया था। 12 जून 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया था और यहीं पर उनपर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। जिसमें भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए कालापानी जेल भेज दिया गया था। श्रमिक नेता ने कहा कि उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की थी। उन्हें 1945 में रिहा किया गया था। देश आजाद होने के बाद वह पटना में आकर रहने लगे थे और 20 जुलाई 1965 को दिल्ली के एम्स में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था। उनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनीवाला में किया गया था। उन्होंने युवाओं से कहा कि मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है। नौजवानों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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