गुडग़ांवI देशवासी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, जिसके तहत क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्र याद कर रहा है। 19 वर्ष की अल्पायु में देश की आजादी के लिए फांसी पर चढऩे वाले वीर क्रांतिकारी खुदीराम बोस की शहादत पर उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा
पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है। उनका जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहां हुआ था। वर्ष 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस देश के मुक्ति आंदोलन में कूद पड़े थे। स्कूल के दिनों से ही खुदीराम बोस राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। वह रिवोलूशनरी पार्टी के भी सक्रिय सदस्य थे। वह कई क्रांतिकारी घटनाओं में भी शामिल रहे थे।
विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढक़र भाग लिया था। श्रमिक नेता ने कहा कि अंग्रेज शासक आमजन को बहुत परेशान करते थे और उन पर अत्याचार भी करते थे। क्रांतिकारियों ने ऐसे अंग्रेजी शासकों को मारने की ठान ली थी। किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी को दी गई थी। मुजफ्फरपुर बम कांड में 2 अंग्रेजी महिलाओं की मौंत हो गई थी। इसके लिए खुदीराम बोस को जिम्मेदार ठहराया गया। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया। मात्र 5 दिन मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी पर चढा़ दिया गया। इतनी कम उम्र के देश की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले खुदीराम बोस पहले क्रांतिकारी थे। आज भी उन्हें बंगाल में घर-घर श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। ऐसे क्रातिकारियों की बदौलत ही देश आजाद हो सका।
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